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श्री गन्धार तीर्थ
तीर्थाधिराज श्री पार्श्वनाथ भगवान, श्वेत । वर्ण, पद्मासनस्थ 70 इंच (श्वे. मन्दिर)।
तीर्थ स्थल समुद्र के किनारे, गंधार गाँव के निकट ।
प्राचीनता यह एक प्राचीन बन्दरगाह था । इस गाँव ने अब तक न जाने कितने उत्थान पतन देखे है । किसी समय यहाँ अनेकों जैन मन्दिर थे । स्थापित प्रतिमा पर अंकित एक लेख के अनुसार विक्रम संवत् 1664 माघ शुक्ला 10 के दिन श्री विजय सेन सूरिजी के हाथों प्रतिमा की प्रतिष्ठा हुई थी। प्रतिमाजी पर विलेपन किया हुआ है ।
विशिष्टता विक्रम की 17वीं शताब्दी में जगतगुरु हीरविजयसूरीश्वरजी अपने विशाल समुदाय के साथ यहाँ चातुर्मास में विराजमान थे । उस समय बादशाह अकबर ने उन्हें फतेहपुर सिकरी आने के लिए
निमंत्रण यहीं पर भेजा था । जगत्गुरु ने वहाँ धर्म की प्रभावना व अनेकों धार्मिक कार्य सम्पन्न हो सकने की सम्भावना को देखते हुए श्री संघ की सलाह और अनुमति से आमंत्रण स्वीकार कर लिया था । यह स्थान भरुच पंचतीर्थी का एक मुख्य तीर्थ माना जाता है ।
अन्य मन्दिर इसी परकोटे में श्री महावीर भगवान का एक मन्दिर है जिसमें स्थापित प्रभु महावीर की प्रतिमा पर विक्रम संवत् 1664 का लेख उत्कीर्ण हैं । इस गाँव से 19 कि. मी. (12 मील) की दूरी पर स्थित दहेज गाँव में यहाँ से ले जाई गयी अनेक प्रतिमाएँ हैं जिनमें जगत्गुरु हीरविजयसूरीश्वरजी की भी (30.5 सें मी.) एक फुट ऊंची प्राचीनतम प्रतिमा है जिसपर उत्कीर्ण लेख से ज्ञात होता है कि इस प्रतिमा को भी विक्रम संवत् 1664 माघ शुक्ला 10 के दिन प्रतिष्ठित किया था ।
कला और सौन्दर्य समुद्र के किनारे छोटे से गाँव के पास जंगल में स्थित यहाँ का दृश्य बहुत ही
TODA
मन्दिरों का बाह्य दृश्य-गंधार
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