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________________ रखा गया । तत्पश्चात् राजा सम्प्रति, श्री सिद्धसेन श्री भरुच तीर्थ दिवाकर के उपदेश से राजा विक्रमादित्य, आंध्र प्रदेश के राजा सातवाहन (जिसके धवज दंड की प्रतिष्ठा आचार्य तीर्थाधिराज श्री मुनिसुव्रत स्वामी भगवान, श्री पादलिप्तसूरिजी द्वारा हुई) । राजा कुमारपाल के श्याम वर्ण, पद्मासनस्थ (श्वे. मन्दिर)। मंत्री उदयन के पुत्र अम्बड़ (जिसकी प्रतिष्ठा आचार्य श्री तीर्थ स्थल समुद्र और नर्मदा नदी के तट पर। हेमचन्द्राचार्य द्वारा हुई व राजा कुमारपाल ने आरती स्थित भरुच गाँव के श्रीमाली पोल में । उतारी) आदि ने उस मन्दिर के जीर्णोद्धार करवाएँ । प्राचीनता भृगुकक्ष, भृगुकुल, भ्रागपुर, भरुअच्च बाद में कालक्रम से कहा जाता है कि शासकों ने कई आदि भरुच के प्राचीन के नाम हैं । लाट देश का यह हिन्दू व जैन मन्दिर मस्जिदों में परिवर्तित किये जिनमें एक प्रमुख शहर था । अश्वमेध यज्ञ के लिये तैयार यह मन्दिर भी एक था । पुरातत्व वेत्ताओं का मत है किये गये अश्व को भगवान मुनिसुव्रत स्वामी ने यहीं कि कला और आकृतियों को देखने पर ऐसा कहा जा प्रतिबोध दिया था जो मृत्यु को प्राप्त कर देव हुआ । सकता है कि वर्तमान जामा मस्जिद ही वह प्राचीन उसने अपने पिछले जन्म के उपकारक प्रभु के मन्दिर । मन्दिर होना चाहिए । अनुमान लगाया जाता है कि का निर्माण कराया । उसी मन्दिर को अश्वावबोध कहते उक्त परिवर्तन समय में प्रभु प्रतिमा कहीं सुरक्षित रखी थे । सिंहल द्वीप के सिंहल राजा की पुत्री सुदर्शना को गयी होगी जिसे कालान्तर में इस नए मन्दिर का अपने पिछले भव में हुए चील का वृत्तांत जाति स्मरण । निर्माण करवाकर उसी प्राचीन प्रतिमा को प्रतिष्ठित ज्ञान से ज्ञात होने पर उसने उस मन्दिर का जीर्णोद्धार किया गया होगा । वि. सं. 2039 में यहाँ का पुनः करवाया, तब इस मन्दिर का नाम शकुनिका विहार जीर्णोद्धार प. पूज्य आचार्य भगवंत श्री विक्रमसरीश्वरजी श्री मुनिसुव्रतस्वामी भगवान मन्दिर-भरुच 654
SR No.002332
Book TitleTirth Darshan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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