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भी इस तीर्थ का उल्लेख मिलता है । विक्रम की चौदहवीं शताब्दी में आचार्य श्री तिलकसूरिजी द्वारा रचित 'चैत्य परिपाटी' में इस तीर्थ का उल्लेख है ।
विक्रम की पन्द्रहवीं शताब्दी में श्री कीर्तिमेरुसूरिजी ने 'शाश्वत तीर्थ माला' में इसका उल्लेख किया है । विक्रम की सत्रहवीं शताब्दी में श्री शांतिकुशलसूरिजी ने 'गोडी पार्श्वस्तवन' में इस तीर्थ का उल्लेख किया है। विक्रम की अठारहवीं शताब्दी में श्री मेघविजयजी उपायाय ने 'श्री पार्श्वनाथ नाममाला' में व श्री शीलविजयजी ने 'तीर्थ माला' में उल्लेख किया है। विक्रम की अठारहवीं शताब्दी के बाद कुछ वर्षों तक यह तीर्थ अस्त व्यस्त बन गया व जैनेतरों की देखभाल में रहा। विक्रम सं. 1938 के आसपास पाटण के श्रावकों ने इस तीर्थ की व्यवस्था पुनः संभाली । तत्पश्चात् इस विशाल मन्दिर का निर्माण करवाकर विक्रम सं. 1984 ज्येष्ठ शुक्ला 5 के शुभ दिन पुनः प्रतिष्ठा करवाई ।
विशिष्टता शासन प्रभावक श्री वीराचार्य, श्री शामला पार्श्वप्रभु मन्दिर-चारुप
सिद्धराज नरेश के आमंत्रण पर मालवा से विहार करके पाटण पधार रहे थे । तब इस प्राचीन तीर्थ स्थल पर पाटण के नरेश ने स्वागतार्थ एक भव्य समारोह का आयोजन किया था, जो उल्लेखनीय है । श्री आषाढ़ी
नाम के सुप्रसिद्ध श्रावक ने तीन जिन प्रतिमाएँ भराई तीर्थाधिराज श्री शामला पार्श्वनाथ भगवान,
थीं । उनमें यह एक है । इसलिए यह तीर्थ स्थान पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, लगभग 120 सें. मी. विशेष महत्व रखता है। (श्वे. मन्दिर)।
अन्य मन्दिर 8 वर्तमान में यहाँ इसके अतिरिक्त तीर्थ स्थल चारुप गाँव के मध्य।
और कोई मन्दिर नहीं है । प्राचीनता इस प्रभु प्रतिमा का इतिहास अति
___ कला और सौन्दर्य प्रभु-प्रतिमा प्राचीन ही प्राचीन माना जाता है । कहा जाता है प्राचीन काल
शिल्पकला का अद्वितीय नमूना है । प्रतिमा में कृशता, में सुप्रसिद्ध श्री आषाढ़ी श्रावक ने 3 प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित
स्वस्थता, गंभीरता व निरागीपन के चिन्ह स्पष्ट दिखते करवाई थीं, उनमें यह भी एक है । वि. की नवमी
हैं । ऐसी प्रतिमा के दर्शन अन्यत्र दुर्लभ हैं । शताब्दी में नागेन्द्र गच्छ के श्री देवचन्द्रसूरिजी द्वारा
___मार्ग दर्शन 8 नजदीक का बड़ा स्टेशन पाटण चारुप महातीर्थ में श्री पार्श्वनाथ प्रभु के परिकर की
10 कि. मी. है,जहाँ से बस व टेक्सियों की सुविधा प्रतिष्ठापना करवाने का उल्लेख है । विक्रम की 13 वीं
है। बस व कार आखिर मन्दिर तक जा सकती है। शताब्दी में नागोर निवासी श्रेष्ठी श्री देवचन्द्र द्वारा यहाँ । श्री आदिनाथ भगवान का मन्दिर निर्मित करवाने का सुविधाएं ठहरने के लिए सर्वसुविधायुक्त उल्लेख है । विक्रम सं. 1320 के लगभग श्रेष्ठी श्री धर्मशाला है, जहाँ भोजनशाला की भी सुविधा हैं । पेथड़शाह द्वारा यहाँ श्री शान्तिनाथ भगवान का मन्दिर पेढ़ी 8 श्री चारुप जैन श्वेताम्बर श्री शामला बनवाने का उल्लेख है । श्री जिनप्रभसूरिजी द्वारा पार्श्वनाथजी महातीर्थ पेढ़ी, पोस्ट : चारुप-384 285. विक्रम सं. 1389 में रचित "विविध तीर्थ कल्प" में जिला : पाटण (गुज.) फोन: 02766-77568 व 77562.
श्री चारुप तीर्थ
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