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________________ श्री बावनगजाजी तीर्थ तीर्थाधिराज श्री आदिनाथ भगवान, भूरा वर्ण, खड्गासन मुद्रा में सुन्दर, भव्य 25.6 मीटर (84 फुट) उत्तंग (दि. मन्दिर) । तीर्थ स्थल जंगल में सुरम्य सतपुड़ा पर्वत की उच्चतम चाटी चूलगिरि पर । प्राचीनता पहाड़ पर अंकित शिला-लेखों और प्रतिमाओं की प्राचीन कलाकृतियों से इस तीर्थ की प्राचीनता अपने आप सिद्ध हो जाती है। आदिनाथ प्रभु की प्रतिमा पर कोई लेख नहीं है । कलाकार, प्रतिष्ठाकारक व प्रतिष्ठाचार्य ने ऐसी विश्व विख्यात मूर्ति का निर्माण करके भी अपना नाम कहीं भी अंकित नहीं किया, यह सचमुच ही उदारता की पराकाष्ठा है। कहा जाता है कि लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व इस प्रतिमा का निर्माण होकर प्रतिष्ठा हुई होगी । विशिष्टता श्री आदिनाथ भगवान की कायोत्सर्ग मुद्रा में चूलगिरि के मध्य एक ही पाषाण में उत्कीर्ण इतनी भव्य रमणीक और आकर्षक प्रतिमा भारत में ही नहीं, बल्कि विश्व में शायद ही कोई हो । भगवान के मुख पर जो वीतरागता और शान्ति के भाव अंकित हैं उन्हें देखकर दर्शक स्वतः अभिभूत हो जाता है । इस प्रतिमा का शिल्प विधान ही अनूठा है । अंग प्रत्यंग सुडौल हैं । मुख पर विराग, करुणा और हास्य की संतुलित छबि अंकित है । ऐसा लगता है कि कलाकार ने प्रभु की ठीक 84 फुट ऊँची प्रतिमा निर्माणित कर प्रभु से प्रार्थना की हो कि प्रभु भक्तों को 84 लाख योनियों से मुक्ति दिलावें । पुराने जमाने म इस प्रदेश में एक हाथ को ही कच्चा गज मानते थे, प्रतिमा लगभग 52 हाथ रहने के कारण बावनगजाजी कहने लगे होंगे । शास्त्रों में उल्लेखानुसार लंकापति रावण के अनुज कुम्भकर्ण व पुत्र इन्द्रजीत अनेकों मुनियों के साथ यहाँ पर मुक्ति को सिधारे थे । इनकी प्राचीन चरण पादुकाएँ यहाँ पर दर्शनीय है । __ यहाँ महामस्तकाभिषेक 12 वर्षों में एक बार होता है तब भारत के कोने-कोने से हजारों यात्रीगण आकर प्रभु भक्ति में भाग लेते है । अन्य मन्दिर इस पर्वत पर 10 और प्राचीन मन्दिर हैं जिनमें अनेकों प्राचीन प्रतिमाएँ है । इनमें से एक प्रतिमा भगवान शान्तिनाथ की 4.0 मीटर (13 फुट) खड्गासन में अति प्राचीन है । ऐसा कहा जाता है कि यह प्रतिमा यहीं पर जमीन से निकली थी। तलहटी में 21 मन्दिर हैं । कला और सौन्दर्य 8 यहाँ की प्राचीनतम मूर्ति कला दर्शनीय है । पहाड़ पर घने जंगल में कलाकारों ने कितनी लगन, श्रद्धा से योजना बनाकर इसका निर्माण किया होगा, इसका अन्दाजा लगाना सरल नहीं। इस पहाड़ पर से, सामने ही नर्मदा नदी कल-कल बहती दिखायी देती है । मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन महु लगभग 130 कि. मी. खण्ड़वा 185 कि. मी., इन्दौर 160 कि. मी. व बड़ौदा 220 कि. मी. दूर है। जहाँ से बस व टेक्सी की सुविधाएं उपलब्ध है । यहाँ से निकट का गाँव बड़वानी 10 कि. मी. की दूरी पर है। यह खण्डवा-बड़ौदा मार्ग पर स्थित है । बड़वानी से ही पहाड़ की चढ़ाई प्रारंभ हो जाती है, जहाँ से 8 कि. मी. की दूरी पर चूलगिरि की तलहटी है । वहाँ तक पक्की सड़क है । तलहटी से 1 कि. मी. की दूरी पर तीर्थ स्थल है जहाँ 800 सीढ़ियाँ बनी हुई है। यात्रियों को पैदल ही जाना पड़ता है, लेकिन वयोवृद्ध यात्रियों के लिए डोली का साधन है । सविधाएँ बडवानी से 8 कि. मी की दूरी पर स्थित पहाड़ पर चूलगिरि की तलहटी में ठहरने के लिए 5 सर्वसुविधायुक्त गेस्ट हाऊस, 4 धर्मशालाएँ व हॉल है, जहाँ पर चाय , नास्टा व भोजनशाला की भी सुविधाएँ उपलब्ध हैं । पेढ़ी8 श्री प्रबन्धक कमेटी, श्री चुलगिरि दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र ट्रस्ट, (बावनगजाजी) । पोस्ट : बड़वानी - 451 551. जिला : बड़वानी, प्रान्त : मध्यप्रेदश, फोन : 07290-22084 व 22425. 672
SR No.002332
Book TitleTirth Darshan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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