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________________ श्री कर्णावती तीर्थ (अहमदाबाद) Pyare F ES श्री संभवनाथ भगवान-कर्णावती (अहमदाबाद) तीर्थाधिराज श्री धर्मनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, लगभग 63 सें. मी. (श्वे. मन्दिर)। तीर्थ स्थल अहमदाबाद शहर में दिल्ली दरवाजे के बाहर सेठ हठीसिंहजी की वाड़ी में । प्राचीनता अहमदाबाद नगर की स्थापना वि. सं. 1468 में हुई मानी जाती है । परन्तु इसके पूर्व यहाँ आशावल व कर्णावती नगरी रहने का उल्लेख है। उपलब्ध उल्लेखानुसार आशावल (आशापल्ली) नगरी दसवीं सदी के पूर्व बस चुकी थी । दसवीं सदी में भाभा पार्श्वनाथ भगवान का एक विशाल मन्दिर था । उदयन मंत्री ने उदयन विहार नामक एक मन्दिर का निर्माण करवाया था । इनके अतिरिक्त भी अनेकों मन्दिर थे । दन्डनायक श्रेष्ठी श्री अभयड़ यहीं के थे। ग्यारहवीं सदी में श्री कर्णदव ने भीलपति आशा को पराजित करके इस नगरी को कर्णावती नगरी के नाम में परिवर्तित किया । किसी समय कर्णावती नगरी जैन धर्म का केन्द्र बन चुकी थी । सोलंकी राजा सिद्धराज के समय आचार्य श्री वादिदेवसूरीश्वरजी का यहाँ पदार्पण हुआ था । श्री साँतू मंत्री ने यहाँ विशाल जैन मन्दिर बनवाया था । आचार्य श्री हेमचन्द्राचार्य ने यहीं पर प्राथमिक शिक्षाग्रहण की थी । मंत्री श्री पेथड़शाह ने यहाँ एक बृहत् ज्ञान-भंडार की स्थापना की थी । कर्नल टोडे ने यहाँ अनेकों मन्दिर रहने का उल्लेख किया है । आज उस शहर व मन्दिरों के अवशेष नजर नहीं आते हैं । कालक्रम से हर जगह का उत्थान-पतन होता है। उसी भाँति यहाँ भी हुआ होगा । शुभ संयोगवश यहाँ पुनः एक विराट नगरी की स्थापना हुई, जो अहमदाबाद नाम से विख्यात हुई । इस नगर की स्थापना से आज तक हर वक्त सैकड़ों मन्दिर रहे। आज भी छोटे-बड़े सवा दो सौ से ज्यादा मन्दिर हैं । वर्तमान मन्दिरों में झवेरीवाड़ में स्थित श्री सम्भवनाथ भगवान का मन्दिर प्राचीन माना जाता है । हठी भाई वाड़ी का मन्दिर, कला व विशालता के लिए प्रसिद्ध हैं। गुजरात के सभी स्थापत्यों में गौरव वाले इस विशाल बावन जिनालय मन्दिर का निर्माण सेठ श्री हठीसिंहजी ने अपनी संपति का सदुपयोग करके करवाया, जो आज भी उनकी धर्मनिष्ठा की याद दिलाता है । उनकी भावना विशिष्ट समारोह के साथ प्रतिष्ठा करवाने की थी । उनके स्वर्गगमन के पश्चात उनकी धर्मपरायणा बुद्धि-निधान धर्मपत्नी सेठाणी श्री हरकोरबाई ने लाखों रुपयों की धनराशि खर्च करके इक्कीस दिन के विराट-महोत्सव के साथ वि. सं. 1903 माघ कृष्णा एकादशी गुरुवार के शुभ दिन आचार्य श्री शान्तिसागरसूरीश्वरजी के सुहस्ते प्रतिष्ठा करवाई। उक्त पुनीत प्रसंग पर देश के विभिन्न स्थानों के लाखों नर-नारियों ने भाग लिया, जिससे समारोह अद्वितीय लगने लगा; दिव्यनगरी प्रतीत होती थी । उस समय जिधर देखो जैन नर-नारियों के समूह नजर आ रहे थे, जिससे यह शहर जैन नगरी-सा प्रतीत होने लगा । इस प्रकार स्वर्गस्थ सेठ श्री हठीसिंहजी की पवित्र भावना साकार हुई । विशिष्टता अहमदाबाद के पूर्व स्थापित आशावल व कर्णावती नगरी का संक्षिप्त विवरण प्राचीनता में 639
SR No.002332
Book TitleTirth Darshan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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