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________________ ऐसा कहा जाता है । इसमें कोई सन्देह नहीं कि अगर खोद कार्य करके खोज की जाय तो अनेकों प्राचीन कलात्मक अवशेष व प्रतिमाएँ प्राप्त हो सकती हैं, क्योंकि यह प्राचीन स्थान है । नवमी शताब्दी के पूर्व भी यहाँ जैन मन्दिर रहने के प्रमाण हैं । जैसे विक्रम की चौदहवीं शताब्दी में जिनप्रभसूरिजी ने यहाँ श्री महावीर भगवान के मन्दिर का वर्णन करते हुए कहा है कि नवमी शताब्दी में श्री बप्पभट्टाचार्यजी इस मन्दिर का दर्शन करने हमेशा आकाश मार्ग से आते थे । विक्रम की आठवीं शताब्दी में आचार्य श्री सिद्धसेनसूरिजी यहाँ यात्रार्थ आये थे । अभी जीर्णोद्धार चालू है । विशिष्टता मोढ़ेरागच्छ का यह उत्पत्ति स्थान है । कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य मोढ़ वंश के थे। सुविख्यात धर्म प्रभावक मालवा नरेश प्रतिबोधक जैनाचार्य श्री बप्पभट्टाचार्य ने यहीं दीक्षा ग्रहण की थी । आचार्य श्री नियमानुसार हमेशा जहाँ भी रहते, वहाँ से आकाशगामिनी विद्या से यहाँ यात्रार्थ पधारते थे। उन्होंने कन्नौज के राजा आम को यहीं पर प्रतिबोध देकर जैन धर्म का अनुयायी बनाया था । महात्मा गाँधी भी मोढ़ जाति के थे व उनके पूर्वजों की भी यही जन्म-भूमि है । प्रतिवर्ष जेठ शुक्ला 3 को ध्वजा चढ़ाई जाती है । श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ मन्दिर-मोढेरा अन्य मन्दिर 8 वर्तमान में यहाँ अन्य कोई मन्दिर नहीं है । कला और सौन्दर्य यह स्थान प्राचीन व ऐतिहासिक रहने के कारण प्राचीन प्रतिमाओं व कलाओं तीर्थाधिराज श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान, के अवशेष जगह-जगह पाए जाते हैं । यहाँ का श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 45 सें. मी. विशाल सूर्य मन्दिर भारतीय शिल्पकला के लिए (श्वे. मन्दिर)। प्रसिद्ध है । तीर्थ स्थल मोढेरा गाँव के मध्य । मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन प्राचीनता 88 यह तीर्थ स्थल विक्रम की नवमी बेचराजी 13 कि. मी. है । जहाँ से बस व टेक्सी की शताब्दी पूर्व का माना जाता है । कयोंकि 'प्रभावक सुविधा है । यहाँ से चाणशमा 15 कि. मी. मेहसाणा चरित्र' में किये उल्लेखानुसार श्री बप्पभट्टसूरिजी ने 25 कि. मी. पाटण 35 कि. मी. व रांतेज 16 कि. विक्रम सं. 807 में यहीं पर आचार्य श्री सिद्धसेनसूरिजी ___मी. दूर है । बस व कार मन्दिर तक जा सकती है। के पास दीक्षा ग्रहण की थी । गाँव के बाहर प्राचीन सुविधाएँ फिलहाल ठहरने के लिए कुछ कमरे जैन मन्दिर के खण्डहर दिखाई देते हैं, मन्दिर के व हॉल है, भोजनशाला भी शीघ्र प्रारंभ होने वाली है। वेशाल कुण्ड है, जहाँ छोटी देवकुलिकाओं में पेढ़ी 8 श्री मोढ़ेरा जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक पद्मासनस्थ जिन प्रतिमाएँ दिखाई देती है । कुण्ड की तपागच्छ संघ, पोस्ट : मोढ़ेरा - 384 212. खुदाई काम करते वक्त कुछ प्रतिमाएँ प्राप्त हुई थी, जिला : मेहसाणा (गुज.), जिन्हें अधिकारियों ने पुनः जमीन में ही रख दिया था, फोन : 02734-84390 पी.पी. श्री मोढेरा तीर्थ 542
SR No.002332
Book TitleTirth Darshan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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