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श्रीमानीया
विजयसेनसूरि आदि । उन्होंने यहाँ रहकर अनेकों ग्रन्थों की रचनाएँ की, मन्दिरों की प्रतिष्ठाएँ करवायीं व धर्म उत्थान व जन कल्याण के अनेकों महत्वपूर्ण कार्य किये जो अत्यन्त प्रशंसनीय है ।
अन्य मन्दिर इस मन्दिर के अतिरिक्त यहाँ और मन्दिर नहीं हैं । इसी मन्दिर के भूमिगृह में भक्तामर मन्दिर है । __ कला और सौन्दर्य श्री मुनिसुव्रतस्वामी भगवान के समय की देवनिर्मित यह प्रतिमा अतीव प्रभावशाली है । मन्दिर के भूमीगृह में नवनिर्मित भक्तामर मन्दिर में श्री आदिनाथ प्रभु की प्रतिमा अतीव सौम्य है । प्राचीन नगर होने के कारण यहाँ स्थान-स्थान पर प्राचीन कलाकृतियों के दर्शन होते हैं ।
मार्ग दर्शन यह स्थान बम्बई-अहमदाबाद रेल्वे व रोड़ मार्ग पर स्थित है । मन्दिर से भरुप स्टेशन व बस स्टेण्ड 172 कि. मी. की दूरी पर स्थित है, जहाँ से आटो, टेक्सी आदि के साधन है । यहाँ से लगभग बड़ौदा 70 कि. मी. झगड़ीया तीर्थ 33 कि. मी. व गन्धार तीर्थ 45 कि. मी. दूर है ।
सुविधाएँ 8 मन्दिर के निकट ही सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला है, जहाँ पर भोजनशाला की भी सुविधा है।
पेढ़ी 8 श्री मुनिसुव्रतस्वामी जैन देरासर पेढ़ी, श्रीमाली पोल, पोस्ट : भरुप - 392 001. जिला : भरूच, (गुज.) फोन : 02642-62586 पिढ़ी),
02642-21750 (धर्मशाला) ।
श्री आदिनाथ भगवान भक्तामर मन्दिर-भरुच
म. सा. की पावन निश्रा में प्रारंभ हुवा जो सम्पूर्ण होकर पुनः प्रतिष्ठा वि. सं. 2045 में उनके गुरुभाई आचार्य नवीनसूरीश्वरजी व उनके शिष्यरत्न प. पू आचार्य भगवंत श्री राजयशसूरीश्वरजी की पावन निश्रा में हर्षोल्लास पूर्वक सुसम्पन्न हुई । प्रतिमा वही प्राचीन मूलनायक रुप में विराजमान है ।
विशिष्टता भगवान मुनिसुव्रतस्वामी ने अश्व को यहीं पर प्रतिबोध दिया था । गणघर गौतमस्वामीजी ने अष्टापद तीर्थ पर रचित जगचिन्तामणि स्तोत्र में भरुप में विराजित भगवान मुनिसुव्रत स्वामी की भी स्तवना की है । अनेकों प्रकाण्ड आचार्यों के यहाँ पदार्पण हुए, जैसे शासन सम्राट आचार्य वज्रभूति, बपुट्टाचार्य, कालकाचार्य, मल्लवादीसूरि, पादलिप्तसूरि,
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