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________________ श्री शेरीशा तीर्थ तीर्थाधिराज श्री पार्श्वनाथ भगवान, श्याम वर्ण, पद्मासनस्थ, 165 सें. मी. (65 इंच) (श्वे. मन्दिर) । तीर्थ स्थल शेरीशा गाँव के निकट पूर्व-दिशा में। प्राचीनता कहा जाता है कि शेरीशा किसी समय सोनपुर नगरी का एक अंग था । आज उस सोनपुर का तो नामोनिशान नहीं है, लेकिन शेरीशा आज भी एक भव्य व मनोरम तीर्थ स्थान है । इस जगह की प्राचीनता के चिन्ह, खण्डहर अवशेषों व स्तम्भों आदि में आज भी यहाँ पाये जाते हैं । विक्रम की 13वीं शताब्दी में श्री देवचन्द्राचार्यजी द्वारा श्री पार्श्वनाथ भगवान के मन्दिर की प्रतिष्ठापना करवाने का उल्लेख हे । उस समय पार्श्वप्रभु की प्रतिमा श्री 'लोढ़ण पार्श्वनाथ' के नाम से प्रसिद्ध थी । यहाँ पर एक खंडित प्रतिमा के परिकर पर अंकित लेख से ज्ञात होता है कि विक्रम की 13 वीं शताब्दी में मंत्री वस्तुपाल तेजपाल ने अपने भाई मालदेव व उनके पुत्र पुनसिंह के क्षेमार्थ इस शेरीशा महातीर्थ में श्री नेमिनाथ भगवान की प्रतिमा को भी प्रतिष्ठित करवाया था । इन सबसे यह सिद्ध होता है कि यह तीर्थ उससे भी प्राचीन है । कविवर लावण्यसमय ने विक्रम संवत् 1562 में बड़े ही सुन्दर ढंग से 'शेरीशा तीर्थ स्तवन की भक्तिभाव पूर्वक रचना की है । इस कारण यह भी कहा जा सकता है कि इस तीर्थ की जाहोजलाली सदियों से बनी है । यहाँ पर समय-समय पर आवश्यक जीर्णोद्धार होते रहे । विक्रम की 16वीं शताब्दी के पश्चात् किसी समय मुस्लिम आक्रमणकारों के हाथ यह तीर्थ खंडित हुआ। विक्रम संवत् 1955 में खंडित जिनालय के खंडहरों की खुदाई करने पर कुछ प्रतिमाएँ प्राप्त हुई उन्हें एक ग्वाले का घर खरीद कर उसमें विराजमान किया । विक्रम संवत् 1988 में पाँच प्रतिमाओं पर लेप करवाया गया व अहमदाबाद के श्रेष्ठी साराभाई डाह्याभाई निर्मित नूतन जिनालय की विक्रम संवत् 2002 में तीर्थोद्धारक आचार्य श्री विजयनेमिसूरीश्वरजी के हाथों वैशाख शुक्ला दशम के दिन प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई । अभी पुनः जीर्णोद्धार का काम प्रारंभ होने वाला है । भोयरे में विराजित श्री पार्श्व प्रभु प्रतिमा श्री शेरीशा पार्श्वनाथ मन्दिर 636
SR No.002332
Book TitleTirth Darshan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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