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श्री उपरियालाजी तीर्थ
तीर्थाधिराज श्री आदीश्वर भगवान, चन्दन वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 76.2 सें. मी. (श्वे. मन्दिर ) । तीर्थ स्थल उपरियाला गाँव के निकट, मुख्य
मार्ग पर ।
प्राचीनता यह तीर्थ विक्रम की 15वीं शताब्दी के पूर्व का माना जाता है। क्योंकि श्री जयसागरजी उपाध्याय द्वारा विक्रम की 15वीं शताब्दी में रचित - चैत्य परिपाटी' में इस तीर्थ का उल्लेख है । विक्रम की 16 वीं शताब्दी में यहाँ के श्रावकों द्वारा जगह-जगह पर अनेकों जिन मन्दिर बनवाने के उल्लेख मिलते हैं। विक्रम की 17 वीं शताब्दी में रचित तीर्थ माला में भी इस तीर्थ का वर्णन है । इन सबसे प्रतीत होता है कि उस जमाने में यहाँ जैनियों की अच्छी जाहोजलाली थी । कालक्रम से कुछ समय तक यह तीर्थ अलोप रहा।
विक्रम संवत् 1919 वैशाख पूर्णिका के दिन इस गाँव के किसान रत्नाकुम्हार को स्वप्न में अपने खेत में जिन प्रतिमाओं के होने का संकेत मिला । उसके आधार पर खुदाई करने पर प्रतिमाएँ पुनः प्रकट हुई । भाग्यशाली किसान ने प्रभु की प्रतिमाओं को बाजों-गाज के साथ ले जाकर भक्ति भाव पूर्वक जैन श्रावकों के
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श्री आदिनाथ भगवान मन्दिर- उपरियाला
सुपुर्द किया व श्रावकों ने सानन्द उन्हें ग्रहण करके विधिपूर्वक विक्रम संवत् 1920 कार्तिक पूर्णिमा के दिन विराजित करवाया । दिनों दिन तीर्थ की ख्याति बढ़ती गयी व हजारों यात्रीगण दर्शनार्थ आने लगे । तत्पश्चात् विक्रम संवत् 1944 माघ शुक्ला त्रयोदशी के दिन प्रतिमा को सुन्दर नवनिर्मित मन्दिर में प्रतिष्ठित किया ।
विशिष्टता प्राचीन समय से यह चमत्कारी क्षेत्र रहा है । प्रतिमाएँ भूगर्भ से प्रकट होने के पूर्व इस स्थान पर बाघरी लोग हिंसा के कार्य करते थे, जिससे उनको नाना प्रकार के कष्ट सहने पड़ते थे । परन्तु कारण का उन्हें पता नहीं लगा । आखिर हैरान होकर जगह खाली की। तभी उनका उपद्रव शान्त हुआ ।
इसके कुछ समय पश्चात् ही रत्ना कुम्हार को भूगर्भ में प्रतिमाओं के होने का संकेत मिला था। कहा जाता है कि प्रतिष्ठा होने के बाद भी चमत्कार होते रहते हैं। यहाँ के पुजारी के कथनानुसार उसने तो यहाँ अनेकों चमत्कार देखे हैं । कहा जाता है कि कभी-कभी दिवाली आदि विशेष त्योहारों के दिन मन्दिर में नगाड़ों व वाद्य संगीत की स्वर लहरी सुनायी पड़ती है । यहाँ लगभग 86 वर्षों से अखण्ड ज्योति है । जिसमें निरन्तर केसरिया काजल के दर्शन होते हैं । प्रति वर्ष फाल्गुन शुक्ला अष्टमी को मेला लगता है ।
अन्य मन्दिर वर्तमान में यहाँ पर इसके
अतिरिक्त एक और मन्दिर हैं । कला और सौन्दर्य यहाँ पर भूगर्भ से प्राप्त प्राचीन प्रतिमाएँ अति ही सुन्दर व आकर्षक हैं । किसी पर लेख अंकित नहीं है । शिखर छोटा व निराले ढंग का है ।
मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का बड़ा गाँव पाटडी 14 कि. मी. दूर है । वीरमगाँव - दसाडा सड़क मार्ग में फुलकी व नवरंगपुरा से होकर यहाँ आना पड़ता है । अहमदाबाद व वीरमगाँव से यहाँ के लिए बसों की सुविधा उपलब्ध है । यहाँ से भोयणी 75 कि. मी. शीयाणी तीर्थ 75 कि. मी. व वीरमगाँव 31 कि. मी. दूर है।
सुविधाएँ
ठहरने के लिए निकट ही धर्मशाला व नये ब्लोक बने हुए है, जहाँ पर पानी, बिजली, बर्तन, ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र व भोजनशाला की सुविधाएँ उपलब्ध है ।