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श्री धोलका तीर्थ
इस तीर्थ का उल्लेख है जिसमें यहाँ के श्री कलिकुंड पार्श्वनाथ प्रभु का उल्लेख है परन्तु वि. सं. 2032 में
यह प्रतिमा यहीं जूने मोहल्ले के भाला-पोल में तीर्थाधिराज श्री कलिकुण्ड पार्श्वनाथ भगवान, श्री आदीश्वर भगवान मन्दिर के तलधर में थी व श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 120 सें. मी. श्री कलिकुंड पार्श्वनाथ भगवान के नाम विख्यात भी (श्वे. मन्दिर)।
थी, जिसका हमारे पूर्व प्रकाशित तीर्थ दर्शन में उल्लेख तीर्थ स्थल धोलका शहर में ।
है अतः हो सकता हैं पहिले यह प्रतिमा मूलनायक रही प्राचीनता इस नगरी का प्राचीन नाम
होगी व किसी समय आक्रमणकारियों के भय से धवलक्कपुर था, ऐसा उल्लेख है । एक किंवदन्ति यह
तलधर में विराजित की गयी होगी । भी है कि महाभारत के समय का विराटनगर नामक वि. सं. 2032 में ही यहाँ दर्शनार्थ पधारे प. पू. शहर यही था ।
पन्यास प्रवर श्री राजेन्द्र विजयजी म.सा. को प्रभु कृपा विक्रम की बारहवीं सदी से यहाँ अनेकों प्रकाण्ड
से इस प्राचीन तीर्थ के पुनः जीर्णोद्धार की दिव्य प्रेरणा आचार्यों का पदार्पण होने का, अनेकों जिन मन्दिर
मिली व दिव्य कृपा से वि. सं. 2033 में प्रारंभ हुवा बनने का व अनेकों प्रकार के धार्मिक कार्य होने का।
कार्य निरन्तर आगे बढ़ा व वि. सं. 2038 फाल्गुन उल्लेख जगह-जगह पर मिलता है । कहा जाता है,
शुक्ला 3 के पावन दिवस इस भव्य मन्दिर में उसी जब समय के प्रभाव से कलिकुण्ड तीर्थ अदृश्य हुआ
प्राचीन श्री कलिकुन्ड पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा को था, तब भक्तों ने कुछ स्थानों पर कलिकुण्ड पार्श्वनाथ
मूलनायक रुप में पुनः प्रतिष्ठित किया गया जो अभी भगवान के प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा करवायी थी, उनमें विद्यमान है । यह एक है । दूसरी जगहों का पता नहीं । यह प्रतिमा विशिष्टता युगप्रधान आचार्य श्री जिनदत्त अति ही प्राचीन है, लेकिन कब व किसने प्रतिष्ठित सूरीश्वरजी ने वि. सं. 1132 में यहाँ जन्म लेकर इस करवायी होगी, पता लगाना कठिन है । प्रतिमा पर भूमि को पावन बनाया है । सिर्फ नव वर्ष की कोई लेख उत्कीर्ण नहीं है । वि. की चौदवीं सदी में बाल्यावस्था में वि. सं. 1141 में संसार त्यागकर श्री श्री विनयप्रभ उपाध्यायजी द्वारा रचित तीर्थ माला में धर्मदव उपाध्यायजी के पास यहीं पर दीक्षा ग्रहण की
श्री कलिकुण्ड पार्श्वनाथ जिनालय-धोलका
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