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________________ श्री नवखण्डा पार्श्वनाथ मन्दिर-घोघा श्री पोधा तीर्थ तीर्थाधिराज श्री नवखण्डा पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, श्याम वर्ण, लगभग 91 सें. मी. ( श्वे. मन्दिर ) । घोघा बन्दर गाँव में । तीर्थ स्थल प्राचीनता प्रतिमाजी पर कोई लेख उत्कीर्ण नहीं है । कहा जाता है यह प्रतिमा प्राचीन काल में बड़वा गाँव के एक कुएँ में से प्राप्त हुई थी । यह कहा जाता है कि पीरमपेट में एक पत्थरकुण्ड में अन्य प्रतिमाओं के साथ यह प्रतिमा भी प्राप्त हुई थी । विक्रम संवत् 1168 में आचार्य श्री महेन्द्रसूरीश्वरजी के सुहस्ते प्रभु प्रतिमा की अंजनशलाका होने का व इस पुनीत कार्य में नाणावटी श्री हीरासेठ द्वारा अपनी चलायमान लक्ष्मी का सदुपयोग करने का उल्लेख है। विक्रम सं. 1430 में आचार्य श्री जिनेन्द्रसूरीश्वरजी की निश्रा में श्रेष्ठी श्री वीरा व पूर्णा ने यहाँ से श्री शत्रुंजय व गिरनार का संघ निकाला था। विक्रम सं. 1431 में श्री जिनोदयसूरीश्वरजी द्वारा भेजे गये विज्ञप्तिपत्र में यहाँ के श्री नवखण्डा पार्श्वनाथ भगवान को वन्दना की 602 है । इन से स्पष्ट सिद्ध होता है कि यह स्थल 12वीं सदी के पूर्व का है । परन्तु प्रतिमाजी उससे भी प्राचीन है । विशिष्टता कहा जाता है जब मुसलमान राजाओं के शासनकाल में अन्य मन्दिरों व प्रतिमाओं को उनके सिपाहियों द्वारा खण्डित किया गया था, उस समय इस प्रतिमा को भी खण्डित किया गया जिससे प्रतिमा के नौ टुकड़े हो गये । अधिष्ठायक देव से अदृश्य प्रेरणा पाकर श्रावकों ने उन टुकड़ों को लापसी में रखा, जिससे वापस प्रतिमा ज्यों की त्यों बन गई। लेकिन नव जगहों में निशान कायम रहे, जो अभी भी विद्यमान हैं । उसी दिन से भक्तगण प्रभु को नवखण्डा पार्श्वनाथ कहने लगे । कुछ वर्ष पूर्व प्रभु के अंगूठे से अमृत रूपी अमी झरती थी यहाँ पर अखण्ड ज्योत कई वर्षों से कायम है | । अन्य मन्दिर : इस मन्दिर के पास ही चार और मन्दिर व कुछ दूर गाँव में 2 मन्दिर है । पास ही श्री नेमिनाथ भगवान के मन्दिर में भूगर्भ से प्राप्त अनेकों प्राचीन प्रतिमाएँ हैं । इस मन्दिर में विक्रम सं. 1354 की दो गुरु प्रतिमाएँ हैं । कहा जाता है कि ये श्री हेमचन्द्राचार्य व आचार्य श्री धर्मघोषसूरीश्वरजी की है। पास ही समवसरण मन्दिर में धातु से निर्मित 16वीं शताब्दी आरम्भ का सुन्दर समवसरण है। मुख्य मन्दिर के आसपास ही श्री सुविधिनाथ भगवान व श्री शान्तिनाथ भगवान के मन्दिर हैं । गाँव में श्री चन्द्रप्रभु भगवान के मन्दिर की बनावट राजा श्री कुमारपाल के समय की मानी जाती है । इसी मन्दिर में श्री विजयदेव सूरीश्वरजी की चरण पादुका विक्रम सं. 1716 की प्रतिष्ठित है । अन्य अनेक प्राचीन अवशेष हैं । गांव के दक्षिण तरफ श्री जीरावला पार्श्वनाथ भगवान का सुन्दर मन्दिर है । इस मन्दिर में विक्रम सं. 1357 में प्रतिष्ठित भव्य गुरु मूर्ति है। लेकिन लेख घिस जाने से आचार्य श्री के नाम का पता लगाना कठिन है । कला और सौन्दर्य यहाँ की प्रभु प्रतिमा की कला विचित्र तो है ही, इसके अतिरिक्त अनेकों प्राचीन प्रतिमाएँ व अवशेष हर मन्दिर में हैं, जो शंसोधनीय हैं। विशेषतः इस मन्दिर में पंचधातु की अनेक प्राचीन एवं विशिष्ट कलाकृति से युक्त प्रतिमाएँ हैं ।
SR No.002332
Book TitleTirth Darshan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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