SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री रत्नावली तीर्थ विशिष्टता यह तीर्थ प्राचीनता के साथ-साथ चमत्कारिक भी है। यह मन्दिर भी चमत्कारिक घटनाओं के साथ ही प्रकट हुवा था । यहाँ से लगभग 5 कि. तीर्थाधिराज श्री नेमिनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, मी. दूर धनपुरा गाँव के एक श्रावक को स्वप्न में बार श्याम वर्ण, लगभग 59 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) । बार हुवे दैविक संकेत के आधार पर खुदाई करने पर तीर्थ स्थल रांतेज गाँव के जैन मोहल्ले में । यह विशाल बावन जिनालय मन्दिर भूगर्भ से प्रकट प्राचीनता यहाँ का इतिहास लगभग 2500 हुवा था । परन्तु मन्दिर में कोई प्रतिमा नहीं थी। वर्ष पूर्व का माना जाता है । प्राचीन अवशेषों व श्रावक द्वारा की गई अठ्ठम तप की आराधना से प्रतिमाओं पर वर्णित उल्लेखों से प्रतीत होता है कि कोई प्रसन्न हुवे श्री अधिष्ठायक देव ने गाँव के पूर्व दिशा समय यह एक विराट नगरी थी व रत्नावली नगरी के में एक रबारी के मकान के पास भूगर्भ में प्राचीन जिन नाम से विख्यात थी । किसी समय यहाँ अनेकों जिन प्रतिमाएँ रहने का संकेत दिया, तदनुसार खुदाई करने मन्दिर रहने का संकेत मिलता है । __ पर 18 जिन प्रतिमाएँ प्राप्त हुई थी । उनमें एक भव्य वर्तमान का यह मन्दिर भी भूमिगत था जो देविक विलेपन की हुई प्रतिमा श्री नेमिनाथ भगवान की थी संकेतों के आधार पर भूमि खोदने पर प्रकट हुवा था। जो इस मन्दिर में मूलनायक के रूप में प्रतिष्ठित की जिसका जीर्णोद्धार वि. सं. 1100 में व अंतिम गई व अन्य प्रतिमाएँ मूल गंभारे में एवं बाहर भमती जीर्णोद्धार वि. सं. 1980 होने का उल्लेख है । में विराजित की गई जो आज भी विद्यमान है । 1110LULINE श्री नेमिनाथ जिनालय-रत्नावली 537
SR No.002332
Book TitleTirth Darshan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy