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श्री घृतकलोल पार्श्वनाथ मन्दिर-सुथरी
श्री सुथरी तीर्थ
तीर्थाधिराज श्री घृतकलोल पार्श्वनाथ भगवान, लगभग 30 सें. मी.
श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, ( श्वे. मन्दिर ) ।
तीर्थ स्थल सुथरी गाँव के मध्य । प्राचीनता यह स्थल कच्छ भुज की अबड़ासा पंचतीर्थी का एक मुख्य तीर्थ माना जाता है । इस मन्दिर की प्रतिष्ठा विक्रम सं. 1895 वैशाख शुक्ला अष्टमी को हुई थी ।
विशिष्टता इस प्रभु प्रतिमा का चमत्कार अति विख्यात है । कहा जाता है कि श्री उदेशी श्रावक की, किसी वक्त अपने प्रवास काल में एक ग्रामीण मनुष्य से भेंट हुई। उसके पास यह प्रभु प्रतिमा थी, जिसे देखकर उदेशी श्रावक अत्यधिक हर्षित हुए व उस व्यक्ति को मुँह माँगा धन देकर बड़े ही हर्षोल्लास व आदर-सत्कार पूर्वक प्रतिमा को अपने घर लाकर खाद्य पदार्थ के भण्डार में रखा । दूसरे दिन जब प्रभु प्रतिमा के दशनार्थ भण्डार का दरवाजा खोला तब भण्डार को खाद्य पदार्थो से भरपूर देखकर उदेशी श्रावक आश्चर्य
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चकित हुए। गाँव में उपस्थित पूज्य यतिवर्य के पास जाकर घटित वृतान्त कहा । उस पर यतिजी ने मन्दिर बनवाकर इस चमत्कारिक प्रभु प्रतिमा को प्रतिष्ठित करवाने की सलाह दी। तदनुसार उदेशी श्रावक ने भव्य मन्दिर का निर्माण करवाया ।
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प्रतिष्ठा के शुभ अवसर पर स्वामीवात्सल्य का आयोजन रखा गया, जिसमें एक ही बर्तन का घी आवश्यक प्रमाण बापरने पर भी बर्तन भरा ही रहा । इस आश्चर्यमयी घटना से उपस्थित भक्तगण प्रभावित होकर प्रभु को घृतकलोल पार्श्वनाथ कहने लगे । प्रतिमा को अत्यन्त हर्षोल्लास के साथ जयध्वनि के बीच विधिपूर्वक प्रतिष्ठित किया गया। कहा जाता है कि अभी भी अनेकों बार चमत्कारिक घटनाएँ घटती हैं। जेसे हाल ही में भगवान श्री महावीर की 25वीं निर्वाण शताब्दी के उपलक्ष्य में आयोजित विराट महोत्सव के समय यहाँ 4 साल से लगातार अकाल होने के कारण पानी की भयंकर समस्या हो गई थी, जिससे यहाँ का संघ अति चिन्तित था । उस समय एक भाग्यशाली श्रावक को स्वप्न में गाँव के बाहर तालाब के बीच 9 फुट गड्ढा खोदने पर पानी मिलने का दैविक संकेत मिला । संकेतित स्थान में गड्डा खोदने पर विपुल मात्रा में निर्मल जल प्राप्त हुआ । यह अभूतपूर्व चमत्कार देखकर गाँव के सारे लोग अत्यन्त प्रफुल्लित हुए व महोत्सव खूब ही हर्षोल्लासपूर्वक मनाया गया । वर्ष में दो दिन सूर्य की किरणें प्रभु प्रतिमा पर आकर चरण स्पर्श करती हैं ।
अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके अतिरिक्त यहाँ पर कोई मन्दिर नहीं है ।
कला और सौन्दर्य मन्दिर के शिखर की कला अति ही आकर्षक है । ऐसी कला का अन्यत्र देखना दुर्लभ है। इसी मन्दिर में गौतमस्वामीजी व पद्मावती देवी की प्राचीन व निराले ढंग की बनी प्रतिमाएँ दर्शनीय हैं, जिनपर विलेपन किया हुआ है ।
मार्ग दर्शन नजदीक का रेल्वे स्टेशन भुज 96 कि. मी. व गाँधीधाम 161 कि. मी. हैं । इन स्थानों से बस व टेक्सी की सुविधा उपलब्ध है। कोठारा से 12 कि. मी. मान्डवी तीर्थ से लगभग 75 कि. मी. दूर है । मन्दिर तक बस व कार जा सकती है ।