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श्री कुम्भारियाजी तीर्थ
तीर्थाधिराज श्री नेमिनाथ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 2.13 कि. मी. (श्वे. मन्दिर)।
तीर्थ स्थल अम्बाजी गाँव से एक कि. मी. दूर दान्ता मार्ग पर एकान्त जंगल में ।।
प्राचीनता इसका प्राचीन नाम आरासणा था, जिसका कुम्भारिया नाम में कब परिवर्तन हुआ - यह पता लगाना कठिन है । शिलालेखों से प्रतीत होता है कि लगभग विक्रम की सत्रहवीं शताब्दी तक इसका नाम आरासणा रहा होगा । यहाँ के आसपास पड़े अवशेषों व उपलब्ध शिलालेखों से ज्ञात होता है कि किसी समय यह विराट नगरी रही होगी, व उसमें सैकड़ों जिन मन्दिर रहे होंगे । हो सकता है किसी
समय भूकंप में यह नगरी धरातल हुई हो । आज यहाँ सिर्फ 5 जिन मन्दिर विद्यमान हैं ।
एक प्रसिद्ध किंवदन्ति के अनुसार मंत्री श्री विमलशाह द्वारा ये मन्दिर लगभग विक्रम सं. 1088 में निमित किये बताये जाते हैं । इस समय सबसे बड़ा मन्दिर श्री नेमिनाथ भगवान का है । अतः इसे मुख्य मन्दिर कहते हैं । यहाँ से आबू तक सुरंग थी, ऐसा कहा जाता है ।
तप्पागच्छ पट्टावली के अनुसार श्री वादीदेवसूरिजी ने विक्रम सं. 1174 से 1226 के दरमियान आरासणा में श्री नेमिनाथ भगवान की प्रतिमा की प्रतिष्ठा कराई थी । 'उपदेशसप्तती में कही कथा के अनुसार आरासणा निवासी श्री गोगा मंत्री के पुत्र श्री पासिल ने श्री नेमिनाथ भगवान का मन्दिर बनवाकर श्री वादीदेवसूरिजी के सुहस्ते प्रतिष्ठा करवाई थी ।
श्री नेमिनाथ भगवान मन्दिर-कुंभारियाजी
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