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________________ श्री वल्लभीपुर तीर्थ तीर्थाधिराज श्वेत वर्ण, लगभग ( श्वे. मन्दिर ) । श्री आदीश्वर भगवान, पद्मासनस्थ, ( 91 सें. मी. ) (3 फुट ) तीर्थ स्थल वल्लभीपुर गाँव में मुख्य मार्ग पर | प्राचीनता श्री वल्लभीपुर का इतिहास प्राचीन है । इसका प्राचीन नाम वमिलपुर था । मौर्यवंशी राजाओं की यह प्राचीन राजधानी थी जिन्होंने सदियों तक यहाँ राज्य किया व इस वंश के अनेकों राजा जैन धर्म के अनुयायी थे । जैन ग्रंथों से पता लगता है कि वीर नि. की 10वीं शताब्दी में मौर्य वंश के राजा 618 धर्मादित्य के पुत्र शिलादित्य ने 'द्वादशारनयचक्रवाल' के रचयिता प्रकाण्ड तार्किक शिरोमणि आचार्य मल्लवादीसूरिजी व 'शत्रुंजय महात्म्य' के रचयिता आचार्य श्री धनेश्वरसूरिजी का राज्य सभा में सम्मान किया था। उसी समय शिलादित्य राजा द्वारा शत्रुंजय तीर्थ का जीर्णोद्धार करवाने का भी उल्लेख है । उस समय यहाँ 84 जिन मन्दिर विद्यमान थे । विक्रम संवत् 511 में श्री देवर्धिगणि क्षमाश्रमण व अन्य 500 आचार्यो ने यहीं पर श्री संघ को एकत्रित कर जैन आगमों को प्रथम बार लिपिबद्ध किया था । विक्रम संवत् 584 में यहाँ के मौर्य वंशी राजा ध्रुवसेन को उनके पुत्र की मृत्यु पर यहाँ विराजित चौथे कालकाचार्य ने उपदेश देकर पुत्र-शोक भुलाया था व श्री देवर्धिगणि क्षमा श्रमण आदि पाँच सौ आचार्यगण
SR No.002332
Book TitleTirth Darshan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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