SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री पपोराजी तीर्थ तीर्थाधिराज श्री आदीश्वर भगवान, श्याम वर्ण पद्मासनस्थ, लगभग ढाई फुट (दि. मन्दिर ) । तीर्थ स्थल टीकमगढ़ से तीन मील दूर टीकमगढ़ - जबलपुर राजकीय मार्ग में समतल भूमि पर विस्तृत परकोटे के बीच विशाल गगन चुम्बी शिखरों युक्त 108 मन्दिरों के साथ | प्राचीनता कहा जाता है कि इसका प्राचीन नाम पम्पापुर था । इस प्राचीन तीर्थ स्थल के मन्दिरों में कई प्रतिमाओं पर विक्रम की 12 वीं सदी के लेख उत्कीर्ण हैं । इस तीर्थ का अन्तिम जीर्णोद्धार विक्रम सं. हुआ जब प्रतिष्ठा आचार्य श्री धर्मकीर्तिजी, भट्टारकजी श्रीपद्मकीर्तिजी व सकल कीर्तिजी द्वारा सम्पन्न हुई थी । तीर्थाधिराज श्री आदीश्वर भगवान की प्राचीन प्रतिमा भोयरे में है जिसपर सं. 1202 का लेख उत्कीर्ण है । 1718 726 * विशिष्टता तीर्थ स्थल के आस-पास फैले हुए घने जंगल को रमन्ता (रामारण्य) कहते हैं । कहा जाता है रघुपति श्री रामचन्द्रजी ने अयोध्या से ओरछा के प्रवास काल में इन वनों में निवास किया था । यहाँ पर अनेकों प्रकार की चमत्कारिक घटनाएँ घटती आ रही हैं जैसे बावड़ी के अन्दर से मनचाहे बर्तन निकलना, मन्दिर प्रतिष्ठा के समय कुएँ में अकस्मात ही पानी भर आना, ज्वर, तिजारी और एकतरा बीमारी से भक्तजनों का मुक्त होना आदि अनेकों उदाहरण मिलते हैं । यह कुआँ कभी खाली नहीं होता । कुएँ का नाम 'पतराखन' है । आज भी अनेक भक्तगण यहाँ आकर बीमारी से मुक्त होते हैं । प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ला 13 से कार्तिक पूर्णिमा तक मेला लगता है । अन्य मन्दिर इसके अतिरिक्त इसी विशाल परकोटे में गगनचुम्बी शिखरों युक्त विभिन्न शैली के 108 मन्दिर हैं । कला और सौन्दर्य यहाँ पर भोयरे में स्थित मूर्तियाँ प्राचीन, अति आकर्षक व सुन्दर हैं । एक ही गगनचुम्बी शिखरों युक्त मन्दिरों का दृश्य पपोराजी
SR No.002332
Book TitleTirth Darshan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy