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किसी समय यह एक विराट नगरी थी । यहाँ पर सैकड़ों मन्दिर, वाव व कुवें आदि होने का उल्लेख है। यह भी कहा जाता है कि किसी समय यह श्री शत्रुजय गिरिराज की तलहटी थी ।।
वि. सं. 523 में परम पवित्र पावन आगम ग्रंथ "कल्पसूत्र" की श्रावकों समक्ष प्रथम वांचना यहीं पर प्रारंभ हुई थी जो अभी तक सब जगह होती आ रही है । यह भी कहा जाता है कि यह वाचना समर्थ आचार्य भगवंत श्री धनेश्वर सूरीश्वरजी द्वारा यहाँ के राजा श्री ध्रुवसेन की राज्य-सभा में उपस्थित जनसमुदाय समक्ष हुई थी जो प्रथम वाचना थी ।
इससे यह सिद्ध होता है कि यह तीर्थ उससे भी पूर्व समय का है ।। ___ वि. सं. 1208 में श्री कुमारपाल राजा ने यहाँ भव्य किला बनाया था जिसके दरवाजे तोरण आदि आज भी उस समय की याद दिलाते हैं ।
वि. सं. 1524 में प्रतिष्ठिासोमजी द्वारा रचित सोम सौभाग्य काव्य में इस वृद्धनगर में समेला नाम के तालाब का व जीवितस्वामी एवं वीर नाम के दो विहारों (मन्दिरों) का उल्लेख है ।
संभवतः आज तक यहाँ अनेकों मन्दिरों का निर्माण हुवा होगा परन्तु वर्तमान में यहाँ सिर्फ 5 मन्दिर हैं जिनमें यह मन्दिर प्राचीनतम माना जाता है, इसे चोटावाला मन्दिर कहते हैं । कहा जाता है कि इसका निर्माण सम्प्रति राजा ने करवाया था । यहाँ श्री महावीर भगवान का मन्दिर भी उसी समय का माना जाता है जिसे हाथीवाला मन्दिर कहते हैं ।
कहा जाता है कि चोटावाला मन्दिर का भोयरा तारंगा तक जाता था । यहाँ का अंतिम जीर्णोद्धार वि. सं. 1845 में होने का उल्लेख है ।
विशिष्टता 8 जैन धर्म का कल्पतरुसम पावन आगम ग्रंथ "कल्पसूत्र" की जन समुदाय के समक्ष वाचना प्रारंभ होने का सौभाग्य इस पावन क्षेत्र को प्राप्त हुवा । उस समय यहाँ का नाम आनन्दपुर था। यह यहाँ की मुख्य विशेषता है ।।
आचार्य श्री सोमसुन्दरसूरिजी ने यहीं पर श्रेष्ठी श्री देवराज द्वारा आयोजित विराट महोत्सव में श्री मुनिसुन्दरजी वाचक को आचार्यपद पर विभुषित किया था । यहीं से
श्री आदिनाथ भगवान मन्दिर-आनन्दपुर
श्री आनन्दपुर तीर्थ
तीर्थाधिराज श्री आदीनाथ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ (श्वे. मन्दिर) ।
तीर्थ स्थल वडनगर स्टेशन से लगभग एक कि. मी. दूर ऊँचे टेकरी पर बसे वडनगर गाँव में ।
प्राचीनता आज का वडनगर गांव प्राचीनकाल में चमत्कारपुर, मदनपुर, आनन्दपुर आदि नामों से विख्यात था । जैन ग्रंथों में इसका नाम वृद्धनगर व आनन्दपुर उल्लेखित है ।
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