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के कारण पहले यह मन्दिर श्री प्रहलादन पार्श्वनाथ मन्दिर के नाम से विख्यात था । अभी यह पल्लवीया पार्श्वनाथ मन्दिर के नाम से प्रचलित है ।।
विशिष्टता कहा जाता है, परमार वंशी पराक्रमी राजा श्री प्रहलादन ने आबू देलवाड़ा की धातुमयी एक विशाल प्रतिमा को गला कर अचलेश्वर महादेव मन्दिर के लिये नन्दी बनवाया था, जिसके कारण राजा कुष्ठ रोग से पीड़ित होकर अत्यन्त कष्ट सहने लगे । अन्त में राजा व्याकुल होकर जंगल में चले गये । जंगल में आचार्य श्री शालिभद्रसूरीश्वरजी से उनकी भेंट हुई । राजा ने सारा वृत्तांत सुनाया व निवारण पाने के लिये प्रार्थना करने लगे । आचार्य श्री ने कुष्ठ रोग से पीड़ित राजा को आशीर्वाद देकर प्रायश्चित स्वरूप श्री पार्श्वनाथ भगवान का मन्दिर बनवाकर प्रभु प्रतिमा का न्हवण जल शरीर पर लगाने की सलाह दी । आचार्य श्री के उपदेशानुसार भव्य मन्दिर का निर्माण हुआ । देवाधिदेव श्री पार्श्वप्रभु की
प्रतिमा को अति ही विराट महोत्सव के साथ हर्षोल्लास श्री पल्लवीया पार्श्वनाथ मन्दिर दृश्य
पूर्वक प्रतिष्ठित करवाया गया । प्रभु प्रतिमा के न्हवण जल का उपयोग करने पर राजा का कुष्ठ रोग निवृत्त
हुआ । भक्तजन प्रभु को पल्लविया पार्श्वनाथ श्री प्रहलादनपुर तीर्थ
कहने लगे । राजा अपने को कृतार्थ समझने लगा व
जैन धर्मावलम्बी बनकर धर्म प्रभावना व उत्थान के तीर्थाधिराज श्री पल्लवीया पार्श्वनाथ भगवान,
अनेकों कार्य किये । राजा खुद भी विद्वान थे, अतः श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 45 सें. मी.
अनेकों ग्रन्थों की रचनाएँ की । उनके द्वारा रचित ग्रंथों (श्वे. मन्दिर) ।
में 'पार्श्व पराक्रम-व्यायोग' नाम का ग्रन्थ विख्यात तीर्थ स्थल 8 पालनपुर गाँव में । प्राचीनता 8 आबू के पराक्रमी राजा श्री
सुप्रसिद्ध राणकपुर तीर्थ प्रतिष्ठाचार्य युगप्रधान आचार्य धारावर्षदेव के भाई श्री प्रहलादन ने अपने नाम पर
श्री सोमसुन्दरसूरीश्वरजी का जन्म वि. सं. 1430 में प्रहलादनपुर नगरी बसाई थी । बाद में इसका नाम
इसी नगरी में हुआ था । अकबर प्रतिबोधक आचार्य पालनपुर में परिवर्तित हुआ । इसका इतिहास विक्रम
श्री हीरविजयसूरीश्वरजी की भी जन्म भूमि यही है । की तेरहवीं सदी के प्रारंभ का माना जाता है ।
इनका जन्म वि. सं. 1583 में यहाँ हुआ था । इस चमत्कारिक घटनाओं के पश्चात् राजा प्रहलादन जैन
मन्दिर के सामने महिलाओं का उपाश्रय है । उसी
स्थान पर आचार्य श्री हीरविजयसूरीश्वरजी का जन्म धर्म के अनुयायी बने व इस मन्दिर का निर्माण करवाकर श्री पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा प्रतिष्ठित
हुआ माना जाता है । करवाई थी, ऐसा उल्लेख है । वि. सं. 1274
अन्य मन्दिर 8 वर्तमान में यहाँ इसके अतिरिक्त फाल्गुन शुक्ला पंचमी के शुभ दिन कोरंटगच्छाचार्य
___ 14 और मन्दिर हैं । श्री कक्कसूरीश्वरजी के शुभहस्ते वर्तमान प्रतिमा की कला और सौन्दर्य 8 इस मन्दिर में और भी प्रतिष्ठा संपन्न हुई । राजा प्रहलादन द्वारा निर्मित होने प्राचीन कलात्मक प्रतिमाएँ दर्शनीय है । श्री अम्बिका
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