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________________ श्री सेमलिया तीर्थ चार कलात्मक स्थंभ आज भी मन्दिर में है जो यहाँ की प्राचीनता प्रमाणित करते है जिन पर सं. 933 उत्कीर्ण है । प्रायः स्थंभों पर लेख उत्कीर्ण कहीं नजर नहीं आता । संभवतः कालक्रम से मन्दिर को भारी क्षति पहुँची हो । जीर्णोद्धार के समय अखण्डित रहे ये चार स्थंभ पुनः काम में लिये गये हो, अन्यथा सिर्फ चार स्थंभों को पश्चात् जोडना संभवसा नहीं लगता । उक्त वार्णित उल्लेखों से इस तीर्थ की प्राचीनता स्वतः सिद्ध होती है । वर्तमान में प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ला 13 को ध्वजा चढ़ाई जाती है । विशिष्टता महाराजा सम्प्रति कालीन बालू से बनी इस भव्य प्रभु प्रतिमा को श्री सम्प्रति महाराजा द्वारा निर्मित मन्दिर में उन्हीं के द्वारा प्रतिष्ठित करवाये जाने का उल्लेख होने के कारण यहाँ की मुख्य विशेषता श्री शान्तिनाथ जिनालय-सेमलिया है । अन्य कहावत के अनुसार किन्ही यतिवर्य द्वारा कहीं से यह मन्दिर यहाँ लाया गया हो तो भी घटित उस चमत्कारिक घटना के लिये यहाँ की विशेषता में और भी प्रमुखता है । वि. सं. 2015 से प्रतिवर्ष भादवा शुक्ला द्वितीया को तीर्थाधिराज श्री शान्तिनाथ भगवान, श्याम मन्दिरजी में निरन्तर अमि झरती आ रही है । कहा वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 47 इंच बालू से बनी जाता है कि कई वर्षों पूर्व तक दूधसी अमि झरती आ (श्वे. मन्दिर)। रही थी । गत कुछ वर्षों से पानीसी अमि झरनी प्रारंभ तीर्थ स्थल सेमलिया गाँव में । हुई जो अभी भी प्रतिवर्ष भाद्रवा शक्ला द्वितीया को प्राचीनता इस मन्दिर का निर्माण कब व । झरती है तब हजारों दर्शनार्थी इसके दर्शन का लाभ लेते किसने करवाया उसका सही पता लगाना कठिन है । हैं । यह घटना भी यहाँ की मुख्य विशेषता है क्यों कि प्रतिमा पर कोई लेख उत्कीर्ण नहीं है परन्तु प्रतिमा प्रतिवर्ष उसी दिन निरन्तर अमि झरना बहुत ही कम अवश्य श्री सम्प्रति महाराजा के समय की प्रतीत होती है। जगह होगा । कहा जाता है कि श्री सम्प्रति महाराजा ने ही यहाँ अन्य मन्दिर 8 वर्तमान में इसके अतिरिक्त कोई मन्दिर का निर्माण करवाकर बालू से बनी भव्य मन्दिर नहीं हैं । चमत्कारिक प्रतिमा की प्रतिष्ठा खुद ने करवाई थी । कला और सौन्दर्य यहाँ के प्राचीन कलात्मक यह भी कहा जाता है कि किसी समय किन्ही चार स्तंभ व प्रभु प्रतिमा अद्वितीय है । यतिवर्य द्वारा यह मन्दिर कहीं से यहाँ लाया गया था, मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन जैसा राजस्थान के नाडुलाई गांव में एक मन्दिर लाये रतलाभ लगभग 16 कि. मी. व नामली 4 कि. मी. जाने का उल्लेख आता है । यह भी किंवदन्ती है कि दूर हैं, जहाँ पर टेक्सी, बस का साधन है। मन्दिर तक किन्ही यतिवर्य द्वारा आकाश मार्ग से कहीं जा रहे चार कार व बस जा सकती है । स्थंभों को यहाँ उतारा था । सुविधाएँ ठहरने के लिये निकट ही _ वि. सं. 933 में श्रावक भीमा द्वारा यह मन्दिर सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला हैं, जहाँ सूर्योदय से सूर्यास्त जीर्णोद्धार करवाने का उल्लेख है । वि. सं. 1533 में पुनः जीर्णोद्धार करवाने का उल्लेख आता है । अन्तिम तक भाता दिया जाता है । जीर्णोद्धार कुछ ही वर्ष पूर्व प्रारंभ हुवा था जो अभी तक पेढ़ी श्री शांतीनाथ जैन श्वे. मन्दिर ट्रस्ट, चल रहा है । पोस्ट : सेमलिया - 457 222. व्हाया : नामली, प्रभु प्रतिमा वही प्राचीन समय-समय पर पुनः जिला : रतलाम, प्रान्त : मध्यप्रदेश, प्रतिष्ठित की गई जो अभी भी विद्यमान है । प्राचीन, फोन : 07412-81210. 694
SR No.002332
Book TitleTirth Darshan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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