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श्री नेमिनाथ जिनालय भोरोल
श्री भोरोल तीर्थ
तीर्थाधिराज श्री नेमिनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, श्याम वर्ण, लगभग 76 सें. मी. (श्वे. मन्दिर ) । तीर्थ स्थल भोरोल गाँव के मध्य । प्राचीनता यहाँ पर भूगर्भ से प्राप्त अनेकों प्राचीन प्रतिमाओं व अवशेषों से ही इस तीर्थ की प्राचीनता के प्रमाण मिल जाते है । प्राचीन काल में यह क्षेत्र पीपलपुर, पीपलपुर पाटण, पीपलग्राम वगैरह नामों से विख्यात था । अंचलगच्छ के वल्लभी शाखा के आचार्य श्री पुण्यतिलकसूरीश्वरजी के उपदेश से विक्रम सं. 1302 में कात्यायनगोत्र के श्रीमाल सेठ पूंजाशाह द्वारा यहाँ शहर के बाहर 1444 स्थंभों वाला बहत्तर देवकुलिकाओं सहित भव्य मन्दिर तथा एक बावड़ी सवा करोड़ रुपयों की धनराशि खर्च करके निर्मित करवाने का उल्लेख है । उक्त बावड़ी अभी भी जीर्णावस्था में मौजूद है । तालाब के पास हिंगलाज माता के मन्दिर में अंबिका देवी की एक खण्डित प्रतिमा व एक खण्डित परिकर है । परिकर पर विक्रम सं. 1261 ज्येष्ठ शुक्ला 2 को श्री जयप्रभसूरिजी द्वारा श्री नेमिनाथ भगवान के बिंव की प्रतिष्ठापना होने का उल्लेख है । इससे यह सिद्ध होता है कि सेठ पूंजाशाह नें विशाल मन्दिर का निर्माण करवाया उसके पहले भी यहाँ मन्दिर विद्यमान थे ।
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शिलालेखों से प्रतीत होता है कि विक्रम सं. 1355 तक तो इसका नाम पीपलग्राम था । संभवतः विक्रम सं. 1414 में रामजी चौहान ने सूंवर राजपूतों को हराकर इस गाँव पर कब्जा किया उस वक्त या कुछ उसके पूर्व नाम बदला हो । वर्तमान मन्दिर लगभग विक्रम की बारहवीं शताब्दी का निर्मित बताया जाता है। सं. 2022 में जीर्णोद्धार के समय चौवीस जिनालयरूप निर्मित इस मन्दिर में यहाँ भूगर्भ से प्राप्त श्री नेमिनाथ प्रभु की इस भव्य व चमत्कारिक प्रतिमा को मूलनायक रूप में व भूगर्भ से प्राप्त अन्य प्रतिमाओं को विभिन्न देवकुलिकाओं में पुनः प्रतिष्ठित करवाया गया । प्रतिमाजी पर कोई लेख नहीं है, परन्तु कलाकृति आदि से दशवीं सदी के पूर्व की प्रतीत होती है । संभवतः वि. सं. 1261 में श्री जयप्रभसूरीश्वरजी द्वारा प्रतिष्ठित यही प्रतिमा हो परन्तु प्रतिमा का निर्माण पहिले हुवा हो । अभी भी जीर्णोद्धार का कार्य चालू I
विशिष्टता संभवतः पिप्पलगच्छ का उत्पत्ति स्थान यही होगा । किसी समय यहाँ अनेकों जैन मन्दिर व सैकड़ों जैन श्रावकों के घर थे । लगभग पन्द्रहवीं शताब्दी तक यह स्थल खूब ही जाहोजलाली पूर्ण रहा, ऐसा भूगर्भ से प्राप्त पत्थरों, ईंटों व खण्डहरों से अनुमान लगाया जाता है । यहाँ पर शोध कार्य किया जाय तो प्राचीन इतिहास प्रकाश में आ सकता है। श्री नेमिनाथ भगवान की प्रतिमा अति ही चमत्कारिक है । प्रतिवर्ष कार्तिक व चैत्री पूर्णिमा को मेला भरता है । हजारों जैन-जैनेतर आते रहते हैं ।
अन्य मन्दिर वर्तमान में इसके अतिरिक्त अन्य कोई मन्दिर नहीं हैं ।
कला और सौन्दर्य प्राचीन काल में अति जाहोजलाली पूर्ण क्षेत्र रहने के कारण भूगर्भ से अनेक कलात्मक अवशेष प्राप्त होते है । नेमिनाथ प्रभु की प्रतिमा अति ही कलात्मक व प्रभावशाली है । इस मन्दिर की अन्य सारी प्रतिमाएँ भूगर्भ से प्राप्त हुई हैं। सारी प्रतिमाएँ राजा सम्प्रतिकाल की अत्यन्त सुन्दर व यथावत् हैं, जो दर्शनीय हैं ।
मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन डीसा 60 कि. मी. भीलडीयाजी 40 कि. मी. व भामर 40 कि. मी. थराद 22 कि. मी. व ढ़ीमा 9 कि. मी. दूर है । इन जगहों से बस व टेक्सी की सुविधा है। कार व बस मन्दिर तक जा सकती है ।