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________________ श्री पाटण तीर्थ शास्त्रानुसार अणहिल भरवाड़ द्वारा बतायी गयी जगह पर जैन श्रेष्ठी श्री चांपा की सलाह से नागेन्द्र गच्छाचार्य श्री शीलगुणसूरिजी ने विक्रम सं. 802 अक्षय तृतीया तीर्थाधिराज श्री पंचासरा पार्श्वनाथ भगवान, सोमवार के शुभदिन जैन विधि विधान से मंत्रोच्चारण पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, लगभग 1.2 मीटर के साथ इस नगर की स्थापना करके नगरी का नाम (श्वे. मन्दिर) । अणहिलपुर पाटण रखा । पराक्रमी जैन राजा तीर्थ स्थल 8 पाटण शहर के मध्य । श्री वनराज चावड़ा को श्रीदेवी श्राविका द्वारा राजतिलक प्राचीनता इस नगरी का इतिहास विक्रम सं. करवाके गादी पर बिठाया गया । तत्पश्चात् राजा 802 से प्रारंभ होता है लेकिन यह पंचासरा पार्श्वप्रभु वनराज ने अपने पूर्वजों की राजधानी के गाँव पंचासरा की प्रतिमा उससे भी पुरानी है । इस नगरी का से श्री पार्श्वनाथ भगवान की इस अलौकिक प्रतिमा को इतिहास प्राचीन तो है ही, अति गौरवशाली व विशाल जनसमुदाय सहित नाना प्रकार के वाहनों व संशोधनीय भी है । वल्लभी व भीनमाल के पतन की विविध प्रकार की वाद्य-ध्वनि के साथ लाकर यहाँ पूर्ति कर सके, ऐसी समर्थ भूमि की खोज में चावड़ा नवनिर्मित भव्य जिनालय में महामहोत्सव पूर्वक हर्षोल्लास वंश के पराक्रमी राजा श्री वनराज लग्नशील थे, ताकि के साथ श्री शीलगुणसूरिजी के सुहस्ते प्रतिष्ठा कराई, वहाँ अपनी वैभवशील राजधानी बना सकें । उन्होंने जिससे यह तीर्थ पंचासरा पार्श्वनाथ के नाम से तार्किक शिरोमणि गोपालक अणहिल भरवाड से चर्चा विख्यात हुआ । वनराज के बाद नवमी शताब्दी से की एवं उपयुक्त भूमी की खोज करने के लिए कहा । चौदहवीं शताब्दी तक चावड़ावंश के क्षेमराज, भुवड, अणहिल भरवाड़ ने सरस्वती नदी से निर्मल होती इस बज्रसिंह, रत्नादित्य, सामंतसिंह आदि राजा हुए । बाद सर्वोत्तम जगह पर कुत्ती व सियार को देखा । अतः में चालुक्य (सोलंकी) वंशज कुमारपाल आदि भी जैन उसने उत्तम शकुन समझकर इसी जगह राजधानी राजा हुए । इनके काल में यहाँ अनेकों मन्दिर बनने बसाने की श्री वनराज चावड़ा को सलाह दी । जैन का उल्लेख है । जैसे वनराज विहार, मूलराज वसहिका, श्री पंचासरा का विख्यात मन्दिर-पाटण 510
SR No.002332
Book TitleTirth Darshan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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