Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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इसी ग्रन्थमें यह भी बताया गया है कि ऋषभदेवको शिक्षाको ग्रहणकर ऐसे धर्म और सम्प्रदाय प्रचलित होंगे, जो अस्नान, अनाचमन, अगौत्र, केशलुञ्च, ईश्वर-कत्तु त्वमें अविश्वास, यश-विरोध आदि करेंगे । लिखा है..
"येन ह वाव कलौ मनुजाः संपदा देवमायामोहिताः ...... ..."निजनिजेच्छाया गृहाना अस्नानानाचमनाशौचकेशोल्लुचनादीनि कलिनाधर्मबहुलेनोपहतषियो अझब्राह्मणयज्ञपुरुषलोकविदुषकाःप्रायेण भविष्यन्ति ।"
मार्कण्डेयपुराणमें तीर्थंकर ऋषभदेवके वर्णनमें लिखा है कि उन्होंने अपने पुत्र भरतको राज्यभार संपिा और स्वयं बिरक्त हो गये । इन्ही भरतके नामपर इस देशका नाम भारतवर्ष पड़ा ।।
कूर्मपुराणमें बताया गया है कि महात्मा नाभि और मेरुदेवीका पुत्र ऋषभ हुआ, जो अत्यन्त क्रान्तिकारी था। ऋषभके सौ पुत्र हुए, जिनमें भरत ज्येष्ठ था । बताया है---
"हिमाह्वयं तु यद्वर्ष' नाभेरासीन्महात्मनः । तस्यर्षभोऽभवत् पूत्रो मेरुदेव्यां महाद्युतिः ।। ऋषभाद् भरतो जज्ञे वीरः पुत्रशताग्रजः । सोऽभिषिच्यर्षभः पुत्र भरतं पृथिवीपतिः ॥"
-अध्याय ४१, श्लोक ३७-३८, पृ० ६१. अग्निपुराणमें महाराज नाभिके अलौकिक राज्यका वर्णन आया है और बताया गया है कि उनके तथा मरुदेवीके पुत्रका नाम ऋषभ था। ऋषभने अपने पुत्र भरतको राज्य देकर शालिग्राममें मुक्ति प्राप्त की। इस पुराणमें ऋषभका महत्त्व उनकी तपस्या एवं उनकी शासन-व्यवस्थाका भी सामान्य चित्रण आया है। इस पुराणमें जैन मान्यताके अनुसार ऋषभके माता-पिताके नाम नाभिराय एवं मरुदेवो आये हैं। __ वायुपुराण और ब्रह्माण्डपुराणके पूर्वार्ध ऋषभदेवके महत्त्वसूचक कई पद्य १. श्रीमद्भागवत, ५।६।९. २. मार्कण्डेयपुराण, अध्याय ५०, श्लोक ३९-४१, पृ० १५० तथा कल्याण, गीताप्रेस, ___ गोरखपुरका हिन्दू-संस्कृति-विशेषांक, जनवरी, १९५०, पृ० ८८२. ३. अग्निपुराण १०१०-११, पृ० ६२. ४. नाभिस्त्वजनयत् पुत्रं मरुदेग्या महायुतिः ।
ऋषभं पार्थिवश्रष्टं सर्व क्षेत्रस्य पूर्वजम् ।। वायु, अ० ३३, पद्य ५०-५२, प. ५१. ५. सोऽभिषिच्यर्षभः पुत्र महाप्रावाज्यमास्थितः । ____ हिमाल दक्षिणं वर्ष तस्यानाम्ना विदुर्बुधाः ।। --ब्रह्मा०, अ० १४, पद्य ६१, पृ. २४. १० : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा