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सम्मानचन्द्रिका पोटिसा 1
[ २५
बहुरि मन:पर्ययज्ञान का वर्णन विषै ताके स्वरूप का, अर दोय भेदनि का अर तहां ऋजुमति तीन प्रकार, विपुलमति छह प्रकार ताका घर मन:पर्यय जहातें उपज है पर जिनके हो है ताका, अर दोय भेदनि विषे विशेष है ताका, वर जीव करि चितया हुवा द्रव्यादिक कौं जाने ताका, यर ऋजुमति का विषयभूत द्रव्य का अर मन:पर्यय संबंधी धवहार का अर विपुलमति के जघन्य तें उत्कृष्ट पर्यन्त द्रव्य अपेक्षा भेद होने का विधान, वा भेदनि का प्रमाण वा द्रव्य का प्रमाण कहि, जघन्य उत्कृष्ट क्षेत्र का भाव का ग है ।
बहुरि केवलज्ञान सर्वज्ञ है, ताका वर्णन हैं । बहुरि इहां जीवनि की संख्या का aft विषै मति, श्रुति, अवधि, मन:पर्यय, केवलज्ञानी का र प्यारों गति संबंधी विभंगज्ञानीनि का, पर कुमति- कुश्रुत ज्ञानीति का प्रमाण वर्णन है ।
बहुरि तेरहवां संयममार्गगा अधिकार विषै - ताके स्वरूप का, अर संयम के भेद के निमित्त का वर्णन है । बहुरि संयम के भेदनि का स्वरूप वर्णन है। तहां परिहारविशुद्धि का विशेष, अर ग्यारह प्रतिमा, अट्ठाईस विषय इत्यादि का वर्णन हैं । बहुरि इहां जीवनि को संख्या का वर्णन विषै सामायिक, छेदोपस्थापन, परिहारविशुद्धि, सुक्ष्मपराय, यथाख्यात संयमधारी, श्रर संयतासंयत, वर संपत जीवनि का प्रमाण वर्णन है ।
बहुरि strai दर्शनमार्गणा अधिकार विषै ताके स्वरूप का अर दर्शन भेदनि के स्वरूप का वर्णन है । बहुरि इहां जीवनि की संख्या का वर्णन विषै शक्ति चक्षुर्दर्शनी, व्यक्त चक्षुर्दर्शनीनि का अर अवधि, केवल, प्रचक्षुर्दर्शनीनि का प्रमाण वर्णन है ।
बहुरि पंद्रहवां श्यामार्गरपा अधिकार विषै- द्रव्य, भाव करि दोय प्रकार लेश्या कहि, भावलेश्या का निरुक्ति लिए लक्षण अर ताकरि बंध होने का वर्णन है । बहुरि सोलह अधिकारनि के नाम है । बहुरि निर्देशाधिकार विषै वह लेश्यानि के नाम है | अर वर्णाधिकार विषे द्रव्य लेश्यानि के कारण का, अर लक्षण का अर छहों द्रव्य यानि के वर्ण का दृष्टांत का, वर जिनके जो-जो द्रव्य लेश्या पाइए, ताका व्याख्यान है । बहुरि प्रमाणाधिकार विष कषायनि के उदयस्थाननि विषै infra स्थान के प्रमाण का, अर तिनविर्ष भी कृष्णादि लेश्यानि के स्थाननि के प्रमाण का, अर संक्लेशविशुद्धि की हानि, वृद्धि ते अशुभ, शुभलेश्या होने के