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सम्यानानचन्द्रिका पोलिका
वर्णन है । बहुरि मतिज्ञान का वर्णन विर्षे याने नामांतर का, अर इंदिय-मन तें. उपजने का पर तहां अवग्रहादि होने का, अर व्यंजन-अर्थ के स्वरूप का, अर व्यंजन विर्षे नेत्र, मन वा ईहादिक न पाइए ताका, अर पहले दर्शन होइ पीछे अवग्रहादि होने के क्रम का अर अवग्रहादिकनि के स्वरूप का, अर अर्थ-व्यंजन के विषयभूत बहु, बहुविध आदि बारह भेदनि का, तहां अनिमृति विर्षे च्यारि प्रकार परोक्ष प्रमाण गर्भितपना आदि का, अर मतिज्ञान के एक, च्यारि, चौबीस, अट्ठाईस पर इनतें बारह मुणे भेदनि का वर्णन है । बहुरि श्रुतज्ञान का वर्णन विर्षे श्रुतज्ञान का लक्षण निरुक्ति आदि का, अर अक्षर-अनक्षर रूप श्रुतज्ञान के उदाहरण वा भेद वा प्रमाण का वर्णन है। बहुरि भाव श्रुतज्ञान अपेक्षा बीस भेदनि का वर्णन है. । तहां पहिला जघन्यरूप पर्याय ज्ञान का वर्णन विर्षे ताके स्वरूप का, अर तिसका आवरण जैसे उदय हो है ताका, पर यह जाकै हो है ताका, पर याका दूसरा नाम लब्धि अक्षर है, ताका वर्णन है । पर पर्यायसमास ज्ञान का वर्णन विर्ष षट्स्थानपतित वृद्धि का वर्णन है। तहां जघन्य ज्ञान के अविभाग प्रतिच्छेदनि का प्रमाण कहि । अर अनंतादिक का प्रमाण अर अनंत भामादिक की सहनानी कहि, जैसे अनंतभागादिक षट्स्थानपतित वृद्धि हो है, ताके ऋम का यंत्रद्वार वन करिअनंत भागादि दद्धिरूप स्थाननिविर्षे अविभाग प्रतिच्छेदनि का प्रमाण ल्यावने को प्रक्षेपक आदि का विधान, पर तहाँ प्रसंग पाइ एक बार, दोय बार, आदि संकलन धन ल्यावने का विधान, अर साधिक जघन्य जहां दुरसा हो है, ताका विधान, अर पर्याय समास विर्षे अनंतभाग आदि वृद्धि होने का प्रमाण इत्यादि विशेष वर्णन है । बहुरि अक्षर आदि अठारह भेदनि का क्रम तें वर्णन है । तहाँ अर्थाक्षर के स्वरूप का, पर तीन प्रकार अक्षरनि का अर शास्त्र के विषयभूत भावनि के प्रमाण का, अर तीन प्रकार पनि का अर चौदह पूर्वनि विर्षे वस्तु वा प्राभूत नामा अधिकारनि के प्रमाण का इत्यादि वर्णन है । बहुरि बीस भेदनि विर्ष अक्षर, अनक्षर श्रुतज्ञान के अठारह, दोय भेदनि का पर पर्यायज्ञानादि की निरुक्ति लिए स्वरूप का वर्णन है। .: बहरि द्रव्यश्रुत का वर्णन विर्षे द्वादशांग के पदनि की अर प्रकीर्णक के अक्षरनि
की संख्यानि का, बहुरि चौसठ मूल अक्षरनि की प्रक्रिया का, पर अपुनरुक्त सर्व अक्षरनि का प्रमाण वा अक्षरनि विर्षे प्रत्येक द्विसंयोगी आदि भंगनि करि तिस प्रमाण ल्यावने का विधान पर सर्वश्रुत के अक्षरनि का प्रमाण वा अक्षरनि विर्षे अंगानि के पद पर प्रकीर्णकनि के अक्षरनि के प्रमाण ल्याबने का विधान इत्यादि वर्णन है । बहुरि प्राचारांग आदि ग्यारह अंग, अर दृष्टिबाद अंग के पांच भेद, तिनमैं परिकर्म के पांच