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[ गोम्मटसार जोनका सम्बन्धी प्रकर
traft के पृथक् विक्रिया, और औरदि के अपृथक् विक्रिया हो है, ताका कथन है । बहुरि त्रियोगी, द्वियोगी, एकयोगी जीवनि का प्रमाण कहि त्रियोगीनि विषै माठ प्रकार मन-वचनयोगी पर काययोगी जीवन का, अर द्वियोगीनि विषै वचन काययोगीनि का वर्णन है। तहां प्रसंग पाइ सत्यमनोयोगादि वा सामान्य मन-वचन-काय योगft के काल का वर्णन है । बहुरि काययोगीनि विषै सात प्रकार काययोगीनि का जुदा-जुदा प्रमाण वर्णन है। तहां प्रसंग पाइ प्रदारिक, प्रौदारिकमिश्र, कार्माण के काल का, वा व्यंतरनि विषे सोपक्रम, अनुपक्रम काल का वर्णन है । बहुरि यहु कथन है ( जो ) जीवनि की संख्या उत्कृष्टपने युगपत् होने की अपेक्षा कही है ।
विधान का
बहुरि दशवां वेदमार्गमा अधिकार विषै - भाव-द्रव्यवेद होने
र तिनके लक्षण का, अर भाव-द्रव्यवेद समान वा असमान हो है ताका, अर वेदनि का कारण दिखाई ब्रह्मचर्य अंगीकार करने का अर तीनों वेदनि का निरुक्ति लिये लक्षण का, अर अवेदी जीवनि का वर्णन है । बहुरि तहां संख्या का वर्णन विषै देवराशि कही । तहां स्त्री-पुरुषवेदीनि का, अर तियंचनि विषे द्रव्य-स्त्री आदि का प्रमाण कहि समस्त पुरुष, स्त्री, नपुंसक वेदीनि का प्रमाण वर्णन है । बहुरि सैनी पंचेन्द्री गर्भज, नपुंसकवेदी इत्यादिक ग्यारह स्थानति विषे जोवनि का प्रमाण वर्णन है ।
बहुरि ग्यारहवां कषायमागंणा अधिकार विषं कषाय का निरुक्ति लिये लक्षरण का, वा सम्यक्त्वादिक घातने रूप दूसरे अर्थ विषै अनन्तानुबंधी आदि का निरुक्ति लिए लक्षण का वर्णन है । बहुरि कषायति के एक, व्यारि, सोलह असंख्यात लोकमात्र भेद कहि क्रोधादिक की उत्कृष्टादि व्यारि प्रकार शक्तिनि का दृष्टांत वा फल की मुख्यता करि वर्णन है । बहुरि पर्याय धरने के पहले समय कषाय होने का नियम है वा नाहीं है सो वर्णन है । बहुरि अकषाय जीवनि का वर्णन है । बहुरि क्रोधादिक के शक्ति अपेक्षा व्यार, लेश्या अपेक्षा चौदह, आयुबंध पर प्रबंध अपेक्षा बीस भेद हैं, तिनका श्रर सर्व कषायस्थाननि का प्रमाण कहि तिन भेदनि विषे जेतेजेते स्थान संभव तिनका वर्णन है । बहुरि इहां जीवनि की संख्या का वर्णन विष नारकी, देव, मनुष्य, तियंच गति विषै जुदा-जुदा क्रोधी आदि जीवनि का प्रमाण वर्णन है। तहां प्रसंग पाइ तिन गतिनि विषे क्रोधादिक का काल वर्णन है ।
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बहुरि बारहवां ज्ञानमार्गणा अधिकार विषै - ज्ञान का निरुक्ति पूर्वक लक्षण कहि, ताके पंचभेदनि का अर क्षयोपशम के स्वरूप का वर्णन है । बहुरि तीन मिथ्या ज्ञाननि का अर मिश्र ज्ञातनि का श्रर तीन कुज्ञान्ति के परिणमन के उदाहरण का
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