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सम्यग्शानका पीठिका।
जीवनि के आकार का, अर काय सहित, काय रहित जीवनि का वर्णन है। बहुरि अग्नि, पृथ्वी, अप, वात, प्रतिष्ठित-अप्रतिष्ठित प्रत्येक-साधारण वनस्पती जीवनि की, अर तिनविर्षे सूक्ष्म-बादर जीवनि की, अर तिनविर्षे भी पर्याप्त-अपर्याप्त जीवनि की संख्या का वर्णन है। तहां प्रसंग पाई पृथ्वी आदि जीवनि की उत्कृष्ट प्रायु का वर्णन है। बहुरि त्रस जीवनि की, पर तिनविर्षे पर्याप्त-अपर्याप्त जीवनि की संख्या का वर्णन है । बहुरि बादरं अग्निकायिक आदि की संख्या का विशेष निर्णय करने के अथि तिनके अर्धच्छेदादिकं का, पर प्रसंग पाइ "विष्णछेदेणवाहिद" इत्यादिक करणसूत्र का वर्णन है।
बहुरि नवमा योगमार्गरणा अधिकार विर्षे - योग के सामान्य लक्षण का अर . सत्य आदि ज्यारि-च्यारि प्रकार मन, वचन योग का वर्णन है। तहां सत्य वचन का विशेष जानने कौं दश प्रकार सत्य का, अर अनुभय वचन का विशेष जानने कौं मामंत्रशी आदि भाषानि का, अर सत्यादिक भेद होने के कारण का, अर केवली के मन, वचन योग संभवने का अर द्रव्य मन के आकार का इत्यादि विशेष वर्णन है । बहुरि काय योग के सात भेदनि का वर्णन है। तहां प्रौदारिकादिकनि के. निरुक्ति पूर्वक लक्षण का, पर मिश्रयोग होने के विधान का, अर प्राहारंक शरीर होने के विशेष का, अर कार्माणयोग के काल का विशेष वर्णन है । बहुरि युगपत् योगनि की प्रवृत्ति होने का विधान वर्णन है । अर योग रहित प्रात्मा का वर्णन है । बहुरि पंच शरीरनि विर्षे कर्म-नोकर्म भेद का, अर पंच शरीरनि की वर्गणा वा समय प्रबद्ध विर्षे परमाणूनि का प्रमाण वा क्रम ते सूक्ष्मपना वा तिनकी अवमाहना का वर्णन है। बहुरि विस्नसोपचय का स्वरूप वा तिनकी परमारण नि के प्रमाण का वर्णन है। बहुरि कर्म-नोकर्म का उत्कृष्ट संचय होने का काल या सामग्री का वर्णन है । बहुरि औदारिक प्रादि पंच शरीरनि का द्रव्य तौ समय प्रबद्ध मात्र कहि । तिनकी उत्कृष्ट स्थिति, अर तहाँ संभवती गुरगहानि, नाना गुणहानि, अन्योन्याभ्यस्तराशि, दो गणहानि का स्वरूप प्रमाण कहि, करणसूत्रादिक तें तहां क्यादिक का प्रमाण ल्याय समय-समय संबंधी निषेकनि का प्रमाण कहि, एक समय विष केते परमाणु उदयरूप होइ निर्जरै, केते सत्ता विर्षे अवशेष रहैं, ताके जानने कौं अंकसंदृष्टि की अपेक्षा लिये त्रिकोण यंत्र का कथन है । बहुरि वैक्रियिकादिकनि का उत्कृष्ट संचय कौनकै कैसै होइ सो वर्णन है । बहुरि योगमार्गणा विर्षे जीवनि की संख्या का वर्णन विर्षे वैक्रियिक शक्ति करि संयुक्त बादर पर्याप्त अग्निकायिक, वातकायिक अर पर्याप्त पंचेन्द्रिय तिर्यंच, मनुष्यनि के प्रमाण का, पर भोगभूमियां आदि