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पठमो भवो ]
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यस मे मित्तस्स । ता कहिं सो उवबन्नो ? किं वा संपयमवत्थतरमणुहवइ' ? किं वा मम मुणियपरमत्थमग्गस्स वि तव्विओयाणल जणियसतावो चित्तम्मि नोवसमं जाइ ति ?
केवलिणा भणियं -- सुण, अत्थि इहेव गंधारपुरे नयरे ऊसइन्नो नाम वत्थसोहगो । तस्स पंगा नाम गेहसुनिया । तीसे गन्भम्मि सुणओ उववन्नोति । सोय अइकढिणरज्जुसंदामिओ भुक्खा परिमिला गदेहो, सोहणिया कुंडनिडवती रासह बुरप्पहारभोओ इहेव संपथं दारुणमवत्थंतर मणुहवइ । जम्मंतरम्मि यं पुक्खरद्धभर हकुसुमपुर निवासिणो ते कुसुमसारसन्नियस्स सेट्ठित्तस्स सिरिकंताभिहाणा अच्चतवल्लहा पत्ती आसित्ति । तयब्भासओ य ते तव्विओयाणलजणिय संतावो चित्तम्मि नोवसमं जाइ ।
तओ मए एयं सोऊणं संजायनिव्वेएणं तन्नेहमोहियमणेण य तस्स पडिमोक्खणनिमित्तं पेसिया ऊसदिन्नवत्थसोहगगिहं निययपुरिसा, भणिया य, तं लहुं मोयाविय विइष्णपाणभोयणं गिव्हिय starगच्छ 'ति । तओ गया ते पुरिसा, सिग्धं च संपाडियं मज्झ सासणं इमेहि, आगया य तं मुद्गतस्य मम मित्रस्य । ततः कुत्र स उपपन्नः ? किं वा साम्प्रतमवस्थान्तरमनुभवति ? किं वा मम ज्ञातपरमार्थमार्गस्य अपि तद्वियोगानलजनितसन्तापः चित्ते नोपशमं याति ? इति ।
केवलिना भणितम् - शृणु, अस्ति इहैव गान्धारपुरे नगरे पुष्यदत्तो नाम वस्त्रशोधकः । तस्य मधुपिङ्गा नाम गेहनी । तस्या गर्भे शुनकः उपपन्न इति ! स च अतिकठिन रज्जुसन्दामितः बुभुक्षा परिम्लानदेहः शोधनिका कुण्डनिकटवर्ती, रासभक्षुरप्रहारभीतः इहैव साम्प्रतं दारुणमवस्थान्तरमनुभवति । जन्मान्तरे च पुष्करार्द्धभरतकुसुमपुर निवासिनस्तव कुसुमसारसंज्ञितस्य श्रेष्ठपुत्रस्य श्रीकान्ताभिधाना अत्यन्त वल्लभी पत्नी आसीदिति । तदभ्यासतश्च तव तद्वियोगानलजनितसन्तापः चित्ते नोपशमं याति ।
ततो मया एतत् श्रुत्वा सञ्जातनिर्वेदेन तत्स्नेहमोहित मनसा च तस्य प्रतिमोक्षणनिमित्तं प्रेषिताः पुष्यदत्तवस्त्रशोधकगृहं निजकपुरुषाः, भणिताश्च तं लघु मोचयित्वा वितीर्णपानभोजनं गृहीत्वा इहैव आगच्छत इति । ततो गतास्ते पुरुषाः, शीघ्र च सम्पादितं मम शासनम् - एभिः
समय वह कौन-सी दूसरी पर्याय का अनुभव कर रहा है ? क्या कारण है कि परमार्थ को जानते हुए भी उसके वियोग की अग्नि से उत्पन्न दुःख मेरे चित्त में शान्त नहीं हो रहा है ?'
केवली ने कहा, 'सुनो ! इसी गान्धारपुर में पुष्यदत्त नाम का धोबी है, उसकी मधुपिङ्गा नामक पालतू कुतिया है। उसके गर्भ में कुत्ते के रूप में उत्पन्न हुआ है । वह अत्यन्त कठोर रस्सी से बँधा हुआ, भूख से दुर्बल शरीरवाला, धोबिन के कुण्ड के पास, गधे के खुर के प्रहार से भयभीत हुआ, इस समय यही दारुण अवस्था का अनुभव कर रहा है । जन्मान्तर में पुष्करार्ध क्षेत्र के भरत खण्ड की कुसुमपुर नगरी में निवास करने वाले कुसुम - सार नाम वाले श्रेष्ठपुत्र (आप) की श्रीकान्ता नाम की अत्यन्त प्रिय पत्नी ( विभावसु का जीव ) थी । उसके अभ्यास से आपके चित्त में वियोग रूपी अग्नि से उत्पन्न दुःख शान्त नहीं हो रहा है ।'
यह सुनकर मुझे विरक्ति हुई । उसके प्रति स्नेह से मोहित मनवाला होने के कारण उसे छुड़ाने के लिए पुष्पदत्त धोबी के घर अपने आदमी भेजे। उनसे कहा, 'उसे शीघ्र ही छुड़ाकर, भोजनपान देकर यहीं ले आओ ।' तब वे लोग गये और मेरी आज्ञा को उन्होंने शीघ्र ही सम्पादित किया तथा उसे लेकर वे आ गये । पिस्सू जैसे १. अनुहव ।
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