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[ समराइच्चकहाँ पालिऊण उव्वट्ठो समाणो इमस्स चेव ऊस दिन्नस्स गेहपसूयाए घोडघडिगाभिहाणाए रासहीए गन्मम्मि रासहत्ताए उववज्जहि त्ति। तओ य निगओ समाणो ऊसदिन्नस्स अमणोरमो, किलेससंपावियसरीरवित्ती, गरुयलारुन्वहणपरिखेइयसरोरो, जोवियसमयं चिटूऊण मओ समाणो ऊसदिन्नसंगयस्स चेव माइदिन्नसन्नियस्स चंडालस्स अणहिंगाभिहाणाए भारियाए कुच्छिसि नपुंसगत्ताए उववज्जिहि ति । तओ य निक्खंतो समाणो कुरूवदोहग्गकलंकदूसिओ, अपरिन्ना'यविसयसंगो, कंचि कालं नपंसगत्ताए जीविऊण सोहविणिबाइयसरीरो देहं पमोत्तूण तीसे चेव चंडालमहिलियाए कुच्छिसि इत्थिगत्ताए उववज्जिहि त्ति । तओ विणिग्गयमेत्तो चेव पमसबालभाववत्ती भुयंगडक्को मरिऊण ऊसदिन्नस्स चेव गब्भ दासीए दत्तियाभिहाणाए कच्छिसि नपुंसगत्ताए उववज्जिहि त्ति।
तओ विणिग्गओ समाणो जच्चंधमडहखुज्जो सबलोयपरिभूओ कंचि कालं नपुंसगत्तं परिवालिऊण पयत्त नयरडाहे किसाणुणा छारीकयसरीरो पंचत्तमुवगच्छिऊण तीसे चेव गन्भदासीए' कुच्छिसि इत्थियत्ताए उववज्जिहि ति । समुप्पन्नो प पीढसप्पो भविस्सइ ति । तओ एत्थेव नयरे रायमग्गेण गच्छंतो वियरिएण मतहत्थिणा वावाइयो समाणो इमस्स चेव ऊसदिन्नस्स पालयित्वा उदवृत्तः सन् अस्यैव पुष्यदत्तस्य गृहप्रसूताया घाटघटिकाभिधानाया रासभ्या गर्भे रासभतया उत्पस्यते (उपपत्स्यते) इति । ततश्च निर्गत सन् पुष्यदत्तस्य अमनोरमः क्लेशसम्प्रापितशरीरवत्तिः गुरुकभारोद्वहनपरिखेदितशरीरः जीवितसमयं स्थित्वा मृतः सन् पुष्यदत्तसंगतस्यैव मातृदत्तसंज्ञितस्य चाण्डालस्य अनधिकाभिधानाया भार्यायाः कुक्षौ नपुंसकतया उत्पत्स्यते इति । ततश्चनिष्क्रान्तः सन् कुरूपदौर्भाग्यकलङ्कदूषितः अपरिज्ञातेविषयसंगः, कंचित् कालं नपुंसकतया जीवित्वा सिंहविनिपातितशरीरो देहं प्रमुच्य तस्या एव चाण्डाल महिलाया: कुक्षौ स्त्रीतया उत्पत्स्यते इति । ततो विनिर्गतमात्र एव प्रथमबालभाववर्ती भुजङ्गदष्टः मृत्वा पुष्य दत्तस्य एव गर्भदास्याः (प्रसूतिकर्मकारिण्याः गृहदास्या वा) दत्तिकाभिधानायाः कुक्षौ नपुसकतया उत्पत्स्यत इति ।
- ततो विनिर्गतः सन् जात्यन्धलघुकुब्जः सर्वलोकपरिभूतः कंचित् कालं नपुसकत्वं परिपाल्य प्रवृत्ते नगरदाहे कृशानुना भस्मीकृतशरीरः पञ्चत्वमुपगम्य तस्या एव गर्भदास्याः कुक्षौ स्त्रीतया उपपत्स्यत इति । समुत्पन्नश्च पीठसी भविष्यति इति । ततोऽत्रैव नगरे राजमार्ग गच्छन्ता विदप्तेन मत्तहस्तिना व्यापादिता सती अस्यैव पुष्यदत्तस्य कालाञ्जनिकाभिधानाया भार्यायाः कुक्षी स्त्रीकुत्ते के भव से निकलकर इसी पुष्यदत्त के घर में प्रसूत घोट घटिका नाम की गधी के गर्भ से गधे के रूप में उत्पन्न होगा। वह पुष्यदत्त के घर असुन्दर, क्लेश से भरणपोषण पानेवाला, भारी भार से थके हुए शरी जीवित हते हए भी मतक के समान रहेगा। वहां से निकलकर पुष्यदत्त के ही समीपवती मातदत्त नामक चाण्डाल की अनधिका नामक भार्या की कोख से नपुंसक के रूप में उत्पन्न होगा। गर्भ से निकलकर कुरूपता रूपी दुर्भाग्य के कलंक से दषित होकर विषयासक्ति का अनुभव न करनेवाला वह कुछ समय तक नपुंसक के रूप में जीकर, सिंह के द्वारा मरण प्राप्त कर शरीर छोड़, उसी चाण्डाल स्त्री के गर्भ में स्त्री पर्याय में (लड़की के रूप में) उत्पन्न होगा। वहाँ गर्भ से निकलते ही बाल्यावस्था के प्रथम चरण में सर्प के द्वारा काटने पर मरा हुआ वह पुष्यदत्त की ही दत्तिका नामक गर्भदासी (प्रसूति कम करने वालो अथवा गृहदासी) की कोख से नपुंसक रूप से उत्पन्न होगा।
गर्भ से निकलकर जन्म से अन्धा, बौना, कुबड़ा, समस्त लोगों से अपमानित हुआ कुछ समय तक नपुंसक पर्याय में रहकर, नगरदाह होने पर अग्नि से शरीर भस्म हान पर, मरण प्राप्त कर उसी गर्भ स्त्री के रूप में जन्म लेगा । उत्पन्न होकर वह पीठ से सरकनेवाली (लँगड़ी) हो जायेगी । तब इसी नगर में राजमार्ग पर जाते हुए गर्व से युक्त मतवाले हाथी द्वारा मारी जाकर इसी पुष्यदत्त की कालानिका नामक स्त्री १. अपरिपाय, २. इत्थियत्ताए, ३, गिह, ४. पयत्ते, ५. गिहदासीए, ६. रायमग्गे, ७. गच्छ, ८. वावाइया, ९. समाणी।
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