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[समराहचकहा तारयनिवहपसाहियतोरणमुहनिमियसुद्धससिलेहं । ससिलेहाविज्जोइयवित्थरसियमंडवनहं तु ॥१६६॥ अवलग्गो य सहरिसं मणिभूसणकिरणभासुरसरीरो। उदयगिरि पिव सो चाउरंतयं दियसनाहो व्व ॥१६७॥ कुसुमावलीए रायंतविमलसियवरदुगुल्लवसणाए। पवियसियवयणकमलाए दिवसलच्छीए व समेओ ॥१६॥ बहुयाए तत्थ धूमेण वरमुहं पेच्छसु ति व भणंता ।
बाहत्थेवा ओणयमुहीए पाएसु से पडिया ॥१६॥ एत्थंतरम्मि य पारद्धो जणाणमुवयारो। दिज्जंति महमहेंतगंधाई विलेवणाई, रुंटतमयरसणाहाई कुसुमदामाइं अइसुरहिगंधगंधिणो पडवासा, कप्पूरवीडयपहाणाई तंबोलाइं, दुगुल्लदेवंगपट्टचीणद्धचीणाई पवरवत्थाई, केऊर-हार-कुंडलतुडियप्पमुहा आहरणविसेसा, तुरक्क
तारकानिवहप्रसाधिततोरणमुखस्थापितशुद्ध शशिलेखम् । शशिलेखाविद्योतितविस्तारसितमण्डपनभस्तु ॥१६६॥ अवलग्नश्च सहर्ष मणिभूषणकिरणभासुरशरीरः । उदयगिरिमिव स चातुरन्तं दिवसनाथ इव ॥१६७॥ कुसुमावल्या राजमानविमलसितवरदुकूलवसनया। प्रविकसितवदनकमलया दिवसलक्ष्म्येव समेतः ॥१६८।। वध्वास्तत्र धूमेन वरमुखं प्रेक्षस्वेतीव भणन्तः ।
वाष्पविन्दवोऽवनतमुख्याः पादयोस्तस्याः पतिताः ॥१६६।। अत्रान्तरे च प्रारब्धो जनानामुपचारः । दीयन्ते च प्रसरद्गन्धानि विलेपनानि, रवन्मधुकरसनाथानि कुसुमदामानि, अतिसुरभिगन्धगन्धिनः पटवासाः, कर्पूरवीटकप्रधानानि ताम्बूलानि, दुकल-देवाङ्गपट्ट-चीनार्द्धचीनानि प्रवरवस्त्राणि केयूर-हार-कुण्डल-त्रुटितप्रमुखा आभरणविशषाः,
ताराओं के समूह से प्रसाधित तोरण के मुख पर शुद्ध चन्द्रकला बनायी गयी थी। चन्द्रमा की किरणों के विस्तार से सफेद मण्डपरूपी आकाश चमक रहा था । रत्ननिर्मित गहनों की किरणों से जिसका शरीर देदीप्यमान था, दिवस लक्ष्मी के साथ उदयगिरि पर अवतीर्ण सूर्य की तरह वह राजकुमार सिंह कुसुमावली के साथ जो शोभामय, उज्ज्वल, सफेद रेशमी वस्त्र धारण किये हुए थी तथा जिसका मुखरूपी कमल विशेष रूप से विकसित था, चौकी पर अवस्थित हुआ। धुएं के कारण वधू के आँसुओं की बूदें मानो झुके हुए मुख वाली वधू को यों कहती हुई उसके चरणों में गिरी कि वर का मुख देखो ॥१६६-१६६।।
इसी बीच लोगों का सत्कार प्रारम्भ हुआ। फैलती हुई गन्ध वाले विलेपन, गुंजार करते भौंरों से युक्त मालाएं, अत्यन्त सुगन्धित गन्ध से सुवासित वस्त्रों पर डाले जाने वाले गन्ध द्रव्य, कपूर डाले गये पान के बीड़े, रेशमी वस्त्र, देवांग वस्त्र, चीनी वस्त्र, अर्द्धचीनी आदि श्रेष्ठ वस्त्र, बाजूबन्द, हार, कुण्डल, त्रुटित (हाथ का विशेष आभूषण) आदि विशेष प्रकार के आभरण; तुरुष्क, वाल्हीक, काम्बोज तथा वज्जर आदि अश्वों से युक्त
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