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१२२ करेऊण कालमुववन्नाइं सहस्साराभिहाणे देवलोए।
तत्थ वि उवभुंजिऊण सुराउयं चविऊण देवलोयाओ कोसलाए विसयम्मि साएए नयरे विणयंधरस्स रन्नो लच्छिमईए महादेवीए सुयत्ताए उववन्नो म्हि ! जाओ कालक्कमेणं । कयं च मे नामं जसोहरो ति। अभयमईजीवदेवो वि चविऊण वेवलोगाओ पाउलिपुत्ते नयरे ईसाणसेणस्स राइणो विजयाए महादेवीए कुच्छिसि धुयत्ताए समुववन्नो ति। जाया कालक्कमेणं । पइट्टावियं च से नामं विणयमइ ति। वढियाइं च अम्हे देहोवचएणं कलाकलावेण य पेसिया य मे सयंवरा ईसाणसेणेण विणयमई । सुयं च मए एयं। परितुट्टो हियएणं। पत्ता य सा महया चडयरेणं, बहुमन्निया ताएणं, आवासिया नयरवाहिं । कयं बद्धावणयं । गणाधिओ वारेऽजदियहो, समागओ मे मणोरहेहिं । निव्वत्तं ण्हवणयं । पयट्टो अहं महाविभूईए विणयमइं परिणेउ। वज्जतेहि विविहमंगलतरेहि नच्चंतेणं विलासिणिजणेणं पढ़तेहि मंगलपाढएहि गायंतेण अम्मयालोएणं धवलगयवरारूढो समेओ रायवंद्रहि' पुलोइज्जमाणो पासायमालातलगयाहिं पुरसुंदरीहिं पत्तो रायदेवलोके।
तत्रापि उपभुज्य सुरायुष्कं च्युत्वा देवलोकात् कोशलाया विषये साकेते नगरे विनयंधरस्य राज्ञो लक्ष्मोवत्या महादेव्या सुततयोपपन्नोऽस्मि । जातः कालक्रमेण । कृतं च मे नाम यशोधर इति । अभयमतीजीवदेवोऽपि च्युत्वा देवलोकात् पाटलिपुत्रे नगरे ईशानसेनस्य राज्ञो विजयाया महादेव्या कुक्षौ दुहिततया समुपपन्न इति । जातो कालक्रमेण । प्रतिष्ठापितं च तस्या नाम विनयमतीति । वधितो चावां देहोपचयेन कलाकलापेन च । प्रेषिता च मे स्वयंवरा ईशानसेनेन विनयमती। श्रुतं च मयतत् । परितुष्टो हृदयेन । प्राप्ता सा महता चटकरेण (आडम्बरेण),, बहु मता तातेन, आवासिता नगरबहिः । कृतं वर्धापनकम् । गणितो (वारेज्जय-दे.) विवाहदिवसः समागतो मे मनोरथैः । निर्वृत्तं स्नपनकम् । प्रवृत्तोऽहं महाविभूत्या विनयमती परिणेतुम् । वाद्यमानविविधमङ्गलतून त्यतो विलासिनीजनेन पठद्भिर्मङ्गलपाठकैर्गीयताऽम्बालोकेन धवलगजवरारूढः समेतो राजवृन्द्रः प्रलोक्यमानः प्रासादमालातलगताभिः पुरसुन्दरीभिः प्राप्तो राजमार्गम् । अत्रान्तरे कालव्यतीत होने पर सैद्धान्तिक विधि से मरणकर सहस्रार नामक स्वर्ग में आया।
वहां पर भी देवायु भोगकर, स्वर्गलोक से च्युत होकर कोशलदेश के साकेत (अयोध्या) नगर में विनयंधर राजा की लक्ष्मीवती नामक महादेवी के गर्भ में पुत्र के रूप में आया । कालक्रम से उत्पन्न हुआ। मेरा नाम यशोधर रखा गया। अभयमती का जीव, जो कि देव हुआ था, स्वर्ग से च्युत होकर पाटलिपुत्र नगर में ईशानसेन राजा की विजया महादेवी के गर्भ में पुत्री के रूप में आया । कालक्रम से वह उत्पन्न हुई। उसका नाम विनयमती रखा गया। हम दोनों शरीर और कलाओं से बढ़ने लगे । ईशानसेन ने स्वयंवर के लिए विनयमती को भेजा। मैंने यह बात सुनी। हृदय से सन्तुष्ट हुआ । वह बड़े समूह के साथ आयी । पिता ने उसका बहुत सम्मान किया। (उसे) नगर के बाहर ठहराया (और) बधाई महोत्सव किया। विवाह के दिन की गणना की, मेरे मनोरयों से विवाह का दिन आया। (मैने) स्नान किया । मैं बड़ी विभूति के साथ विनयमती का परिणय करने के लिए उद्यत हुआ। (उस समय) नाना प्रकार के मंगल बाजे बज रहे थे, वेश्याएं नाच रही थीं, पाठकगण मंगलपाठ पढ़ रहे थे, माताएं गा रही थीं, राजाओं के समूह के साथ मैं सफेद हाथी पर सवार हुमा था। महलों के नीचे आयी हुई नगर की स्त्रियां मुझे देख रही थीं। (इस प्रकार मैं) राजमार्ग पर आया। इसी बीच मेरी दायीं
१.राइव
"-क।
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