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तइओ भवो
वक्खायं जं भणियं सोहा णंदा य तह पियापुत्ता ।
सहि-जालिणिमाइसुआ एत्तो एअं पवक्खामि ॥२३६॥
अस्थि इव जंबुद्दीवे, अवरविदेहे खेत्ते अपरिमियजणनिवास, अणणुहूयवाहिवेयणं, अदिट्ठपरचक्कविभमं, सुंदरपुरनायगभूयं कोसंबनाम नयरं । जत्थ सरलसहावो, थिरसिणेहाणुबंधो, अगराहाणी, धम्मफलकप्पो इत्थियाजणो । जत्थ पियंबओ, सच्चवयणो, पढमाभिभासी, धम्मनिरओ य मणुस्वग्गो । तत्थ य अणेयसमर संघट्टविणिज्जियद रियनरि दावणयपत्हत्थवियडमउडकोडिरयणप्पहारज्जियचरणजुयलो राया नामेण अजियसेणी त्ति । तस्स य सयलरज्जचितओ, अत्तानिविसेस इंदसम्मो नाम माहणसचिवो । सुहंकरा से भारिया । इओ य सो आणंदनारओ सागरोवमंतम्मि नरए खविऊण, अन्ने वि किंचूर्ण चत्तारि सागरोवमे संसारे समाहिंडिय इंदसम्मस्स
व्याख्यातं यद् भणितम् सिंहाऽऽनन्दौ च तथा पितृपुत्रौ । शिखि - जालिनिमातृसुते इत एतत् प्रवक्ष्यामि ॥२३६॥
अस्ति इहैव जम्बुद्वीपे अपरविदेहे क्षेत्रे अपरिमितजन निवासम्, अननुभूतव्याधिवेदनम्, अदृष्टपरचक्रविभ्रमम्, सुन्दरपुरनायकभूतं कौशाम्बं नाम नगरम् । यत्र सरल स्वभाव:, स्थिरस्नेहानुबन्धः, अनङ्गराजधानी, धर्मफल कल्पः स्त्रीजनः । यत्र प्रियंवदः, सत्यवचनः, प्रथमाऽभिभाषी धर्मनिरतो मनुष्यवर्गः । तत्र च अनेकसमरसंघट्टविनिजित दृप्तनरेन्द्रावनतपर्यस्त विकटमुकुटकोटिरत्नप्रभारञ्जितचरणयुगलो राजा नाम्ना अजितसेन इति । तस्य च सकल राज्यचिन्तकः, आत्मनिर्विशेष इन्द्रशर्मा नाम ब्राह्मणसंचिवः । शुभंकरा तस्य भार्या । इतश्च स आनन्दनारकः सागरोपममन्ते नरके क्षपयित्वा अन्यानि अपि किञ्चिदूनानि चत्वारि सागरोपमाणि संसारे समा
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पिता-पुत्र के रूप में सिंह और आनन्द के विषय में जो वर्णन किया, उसकी व्याख्या हो गयी । अब यहाँ पर पुत्र और माता के रूप में शिखि और जालिनी के विषय में कहूँगा || २३६ ||
इसी जम्बूद्वीप के अपरविदेह क्षेत्र में कौशाम्ब नाम का नगर निवास था । वहाँ पर किसी रोग की वेदना का अनुभव नहीं होता था, और वह नगर सुन्दर नगरों के नायक के समान था । वहाँ की स्त्रियाँ उद्देश्य रखने वाली, काम की राजधानी और धर्मरूप फल के सदृश थीं । वहाँ पर मनुष्यवर्ग प्रिय बोलने वाला, सत्यभाषी, प्रथम बोलने वाला तथा धर्म में रत था । वहाँ का राजा अजितसेन था । उस राजा के दोनों चरण अनेक युद्धों की टक्कर में जीते गये गर्वीले राजाओं के झुके हुए अस्त-व्यस्त भयंकर मुकुटों के अग्रभाग में लगे हुए रत्नों की प्रभा से रंजित थे । उसका समस्त राज्य की चिन्ता करने वाला, अपने समान इन्द्र शर्मा नामक ब्राह्मण मन्त्री था । उसकी पत्नो शुभंकरा थी । इधर वह आनन्द नारकी नरक में एक सागर की आयु व्यतीत कर १. सुरपुरनायभूयं - ख ।
था । उस नगर में अपरिमित जनों का शत्रुओं का भ्रमण नहीं देखा जाता था सरल स्वभाब वाली, स्थिर स्नेह का
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