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तहको भवो ति। तओ जाओ से दोहलओ-करेमि सव्वसत्ताणमाणदं, संपाडेमि देवयाययणाणं महापूयाओ, पूएमि भगवंते धम्मनिरए महातवस्सी, सुणिमो किंचि परलोयमग्गं ति। संपाडिओ से भत्तारेण डोहलो। गब्भपभावेण जामा मणोरमा लोयस्स। पत्तो य सइसमओ। पसूया एसा। चितियं च तीए- वहं पुण एस एहमेत्तपरियणसमक्खं वावाइयव्यो ति ? एत्थंतरम्मि मुणियतयभिप्पायाए बंभदत्तवयणं सरिऊण भणियं बंधुजीवाभिहाणाए बालसहीए । भट्टिणि' ! पावो खु एस गब्भो।ता अलमिमिणा किलेसाऽऽयासकारएण, वरं विइंचिको एसो त्ति । तओ कसायपरवसाए वावायणम्मि सहियणलज्जालुयाए भणियं जालिणीए--'तुम्भे जाणह' त्ति । तओ अवणीओ दारओ, निवेइओ बंभदत्तस्स । कयं से तेण सयलं सुत्थं । नीणिओ लोगवाओ 'वावन्नगब्भा भट्टिणि' त्ति । एवं च अइक्कंतो कोइ कालो । पइद्वावियं नाम बालयस्स 'सिहि' ति । वढिओ सो कलाकलावेण देहोवचएण य । संपाइयं से निरवसेसं कालोचियं बंभदत्तणं। गहिओ पच्छा "उदरपुत्तओ' त्ति । विन्नाओ य वृत्तंतो इमिणा सुमिणयदंसण-गब्भसाडणाइओय जणणीए। वेरग्गिओ एसो।
मम निवेदयितव्य इति । ततो जातस्तस्या दोहदा-करोमि सर्वसत्त्वानामानन्दम् , सम्पादयामि देवतायतनानां महापूजाः, पूजयामि भगवतो धर्मनिरतान् महातपस्विनः, शृणुमः कञ्चित् परलोकमार्गम्-इति । सम्पादितस्तस्या भ; दोहदः । गर्भप्रभावेण जाता मनोरमा लोकस्य । प्राप्तश्च सूतिसमयः । प्रसूता एषा । चिन्तितं च तया-कथं पुनरेष एतावन्मात्रपरिजनसमक्षं व्यापादयितव्य इति । अत्रान्तरे ज्ञाततदभिप्रायया ब्रह्मदत्तवचनं स्मृत्वा भणितं बन्धुजीवाभिधानया बालसख्या। भत्रि ! पापः खलु एष गर्भः। ततोऽलमनेन क्लेशाऽऽयासकारकेन, वरं विभक्त (विनाशितः) एष इति । ततः कषायपरवशया व्यापादने सखीजनलज्जालु तया भणितं जालिन्या-'ययं जानीत' इति । ततोऽपनीतो दारकः, निवेदितो ब्रह्मदत्तस्य । कृतं तस्य तेन सकलं सुस्थम् । नीतो लोकवादः 'व्यापन्नगर्भा भी' इति । एवं च अतिक्रान्तः कश्चित् कालः । प्रतिष्ठापितं नाम बालकस्य 'शिखी' इति। वधितः स कलाकलापेन देहोपचयेन च । सम्पादितं तस्य निरवशेष कालोचितं ब्रह्मदत्तेन । गहीतः पश्चात् 'उदरपुत्रः' इति । विज्ञातो वृत्तान्तोऽनेन स्वप्नदर्शन-गर्भशातनादिकश्च जनन्याः। वैराग्यित एषः।
प्राणियों का आनन्द करूं, देवमन्दिरों की महापूजा कराऊँ, धर्म में रत महातपस्वियों की पूजा कराऊँ और कुछ परलोक के मार्ग के विषय में सुनू'। उसके पति ने दोहला पूरा किया । गर्भ के प्रभाव से लोगों के लिए वह मनोरम हो गयी। प्रसव का समय आया । इसने प्रसव किया। उसने सोचा-कैसे इसे इतने सेवकों के सामने मार शल? इसी बीच उसके अभिप्राय को जानकर ब्रह्मदत्त का वचन सारण कर बन्धुजीवा नामक उसकी बालसखी ने कहा- "स्वामिनि ! यह गर्भ पापी है अतः क्लेश और परिश्रम को करने वाले इस गर्भ से बस अर्थात् यह गर्भ व्यर्थ है, अच्छा है इसको नष्ट कर डालें।" तब कषाय के वशीभूत होकर मारने की इच्छुक जालिनी ने सखीजनों के प्रति लज्जाशोल होने के कारण कहा--"आप लोग जाने।" तब पुत्र को ले जाया गया । ब्रह्मदत्त से निवेदन किया। उसका सब कुछ ठीक कर दिया। लोगों में अफवाह फैला दी कि स्वामिनी का गर्भ मरा निकला । इस प्रकार कुछ समय व्यतीत हुआ। बालक का नाम शिबी रखा (या । वह कल ओं के समूह और शरीर से बढ़ता गया। उसकी सारी समयोचित क्रियाएँ ब्रह्मदत्त ने सम्पन्न की। बाद में उसे गोद ले लिया। इसने माता के स्वप्नदर्शन और गर्भ नष्ट करने सम्बन्धी वृत्तान्त को जाना । इसे वैराग्य हो गया।
१. वहिणि-ख।
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