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[समराइचकहा एत्थंतरम्मि मणियवृत्तंता पुत्तरस कसाइया से जणणी। चितियं च तेण-किह ?
एवंविहा कसाया पावा भवविडविमूलजलओघा'। मोक्खत्थमुज्जएहि वज्जेयव्वा पयत्तेण ॥२३७॥ एत्तो कम्मविवुड्डी, तओ भवो, तत्थ दुक्खसंघाओ।
तत्तो उब्वियमाणो पयहेज्ज तए महापावे ॥२३॥ भणियं च
कलुसफलेण न जुज्जइ कि चित्तं तत्थ जं विगयरागो ।
संते वि जो कसाए निगिण्हइ सो वि तत्तल्लो॥२३६॥ तक्कसाओदएणं च सा कुविया बंभदत्तस्स। परिचत्तं च सयलकरणिज्जं। भणिओ बंभदत्तो। एयं वा पियं करेहि, ममं व त्ति, एयम्मि अपरिचत्ते नाहं पाणसाहारणं उदयं पि गेण्हामि ति। निसामिओ एस वुत्तंतो सिहिकुमारेण । अच्चुग्विग्गो' निग्गओ गेहाओ। चितियं च तेण-पेच्छ मे अत्रान्तरे ज्ञातवृत्तान्ता पुत्रस्य कषायिता तस्य जननी । चिन्तितं च तेन-कस्मात् ?
एवंविधाः कषायाः पापा भवविटपिमलजलदोषाः । मोक्षार्थमुद्यतैः वर्जयितव्या. प्रयत्नेन ॥२३७॥ इतः कर्मविवृद्धिः, ततो भयः, तत्र दुःखसंघातः ।
तत उद्विजमानः प्रजह्यात् तान् महापापान् ॥२३८।। भणितं च
कलुषफलेन न युज्यते किं चित्रं तत्र यद् विगतरागः ।
सतोऽपि यः कषायान् निगृह्णाति सोऽपि तत्तुल्यः ।।२३६॥ तत्कषायोदयेण च सा कुपिता ब्रह्मदत्तस्य । परित्यक्तं सकलकरणीयम् । भणितो ब्रह्मदत्तः । एतं वा प्रियं कुरु, मां वा इति, एतस्मिन् अपरित्यक्ते नाऽहं प्राणसन्धारणमुदकमपि गृह्णामि इति । निशमित एष वृत्तान्तः शिखिकुमारेण । अत्युद्विग्नो निर्गतो गेहात् । चिन्तितं च तेन-प्रेक्षस्व मम
इसी बीच पुत्र का वृत्तान्त जानकर उसकी माता कषाय से युक्त हुई। उसने (पुत्र ने) सोचा-कैसे ?
संसार रूपी वृक्ष के मूल के लिए जो बादलों के समूह के समान हैं, इस प्रकार की पापमयी कषायों को मोक्षरूप प्रयोजन के लिए उद्यत व्यक्तियों को प्रयत्नपूर्वक छोड़ देना चाहिए । इनसे कर्मों की वृद्धि होती है। कर्मों की वद्धि से भय होता है और उससे दुःखों का समूह पैदा होता है । उससे भयभीत होकर उन महापापों को छोड़ देना चाहिए । ॥२३७-२३८॥
कहा भी है
जो वीतराग है वह कलुष रूप (पाप रूप) फल से युक्त नहीं होता है, इसमें आश्चर्य क्या है ? (तब फिर) जो कलुष फल से युक्त होते हुए भी कषायों का निग्रह करता है, वह भी वीतरागी के तुल्य है ॥२३६।।
उस कषाय के उदय से वह (जालिनी) ब्रह्मदत्त पर क्रोधित हुई। (उसने) समस्त कार्यों को छोड़ दिया । ब्रह्मदत्त से कहा- 'इसका प्रिय करो अथवा मेरा प्रिय करो। इसको त्यागे बिना मैं प्राण धारण के लिए जल भी ग्रहण नहीं करूंगी'- इस वृत्तान्त को शिखिकुमार ने सुना। अत्यन्य दुःखी होकर घर से निकल गया। उसने १. दोघा-ग, २. अच्चम्यिागओ-ख ।
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