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चउत्यो भयो]
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रायपुरिसेहि तणमसिगेल्यभूईविलित्तसव्वंगो। कोसियमालाभूसियसिरोहरो विगयवसणो य ॥२५२॥ निहिउत्तमंगकणवीरदामलंबंतभासुरालोओ। छित्तरकयायवत्तो उन्भडसियरासहारूढो ॥३५३॥ डिडिमयसदमेलियबहुजणपरिवारिओ य सो नवरं। दक्खिणदिसाए नीओ भीमं अह वज्झथाणं ति॥२५४॥ नीससिऊण सुदोह' सविलयमह पेच्छिऊण य जणोहं । परिचितियं च तेणं कहमलियं होइ मुणिवयणं ॥३५॥ एण्हिं पि मज्झ जुत्तं गहियं जं जस्स संतियं रित्थं । साहेमि तयं सव्वं धरणिगयं तस्स कि तेणं ॥३५६॥ इय चितिऊण भणिय। तेणं नरणाहसंतिया परिसा। मोत्तूण मं न मुढें थाणमिणं केणइ निउत्तं ॥३५७॥ राजपुरुषैस्तृणमषागैरिकभूतिावलिप्तसर्वाङ्गः । कौशिकमालाभूषितशिरोधरो विगतवसनश्च ॥३५२।। निहितोत्तमाङ्गकणवारदामलम्बमानभासुरालोकः। छित्तर(शूर्प)कृतातपत्र उद्भटसितरासभारूढः ।।३५३॥ डिण्डिमकशब्दमेोलतबहुजनपरिवारितश्च स नवरम् । दक्षिणदिशि नोतो भाममथ वध्यस्थानमिति ॥३५४।। निःश्वस्य सुदीर्घ सव्यलोकमथ प्रेक्ष्य च जनौघम परिचिन्तितं च तेन कथमलोकं भवति मुनिवचनम् ॥३५५।। इदानीमपि मम युक्तं गृहीतं यद् यस्य सत्कं रिक्थम् । कथयामि तत् सर्वं धरणीगतं तस्य कि तेन ॥३५६।। इति चिन्तयित्वा भणितास्तेन नरनाथसत्काः पुरुषाः।
मुक्त्वा मां न मुष्टं स्थानमिदं केनचिन्नियुक्तम् ॥३५७।। राजापुरुषों ने कोयले और गेरू से उसका सारा शरीर लिप्त कर दिया था, कुश की बनी माला से उसकी गर्दन सुशोभित थी। वह नग्न था। सिर पर लटकी हुई कनेर की माला से वह देदीप्यमान हो रहा था । उसके ऊपर सर्य का छत्र लगा हुआ था तथा उसे प्रचण्ड सफेद गधे पर आरूढ़ कराया गया था। वह दूसरे बहुत से लोगों से घिरा हुआ डिण्डिमनाद के साथ दक्षिण दिशा में भयंकर वध-स्थान की ओर ले जाया जा रहा था । दुःख सहित लम्बी सांस लेकर और जन समुदाय को देखकर उसने विचार किया-मुनि के वचन झूठ कैसे हो सकते हैं ? इस समय भी मेरे लिए उचित है कि जिसका धन मैंने ग्रहण किया है, भूमि में गड़े हुए उस सब धन के विषय में कहूं । उससे क्या ? अर्थात् वह व्यर्थ है। ऐसा विचार कर राजा के पुरुषों से कहा कि मुझे छोड़कर किसी नियुक्त पुरुष ने इस स्थान पर चोरी नहीं की है।।३५२-३५७।।
१, सदीई-
कावल्प-क।
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