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[समराइच्चकहा पुच्छिओ य आगमणपओयणं । साहियं च तेणं । तओ मए तमणुपुच्छिऊण रायालंकारकोसल्लियसहाओ पेसिओ नरिंदपच्चायणनिमित्तं जीविओ। गओ य सो सात्थि । अलंकारदरिसणपुव्वयं विन्नत्तो तेण राया एयवइयरेण । कओ से राइणा पसाओ। पेसिया गंधव्वदत्तस्स सावत्थिपवेसणनिमित्तं महंतया । नीओ महंतहि, पवेसिओ राइगा महाविभूईए, विट्ठो य जणणिजण उपमुहेण सयणवग्गेण । पाविया तेण कंठगयपाणा वासवदत्ता । ता एयं निमित्तं ।
मंतिणा भणियं-साहु ववसियं, मित्तकज्जवच्छला चेव सप्पुरिसा हवंति । 'निदोसा खु ते पुव्वगहिय' त्ति मंतिऊण मोयाविया धणाई । 'भयवं, तुमए वि सविवेगाणुरूवमायरियन्वं' ति भणिऊण विसज्जिओ परिव्वाथओ।
धणो वि य ते रायपुरिसे पेसिऊण सात्थि पयट्टो जलनिहितीरसंठियं वयराडं नाम नयरं । कहाणयविसेसेण पत्तो पउमावई नाम अडवि। तीए वि य कइवयकप्पडियपरिवारियस्स एगम्मि विभागे उट्टियं वणगइंदपीढं । पगट्ठा दिसोदिसं कप्पडिया। धाइओ गयकलहगो धणमग्गेणं । गहिओ च तेन। ततो मया तमनुपृच्छ्य राजालङ्कारकौलिक(उपहार)सहायः प्रेषितो नरेन्द्रप्रत्यायननिमित्तो जीविकः । गतश्च स श्रावस्तोम् । अलङ्कारदर्शनपूर्वकं विज्ञप्तस्तेन राजा एतद्व्यतिकरण । कृतस्तस्य राज्ञा प्रसादः । प्रेषिता गन्धर्वदत्तस्य श्रावस्तोप्रवेशननिमित्तं महत्काः। नीतो महत्कः, प्रवेशितो राज्ञा महाविभूत्या, दृष्टश्च जननीजनकप्रमुखेन स्वजनवर्गेण । प्राप्ता तेन कण्ठगतप्राणा वासवदत्ता तत एतन्निमित्तम् ।
मन्त्रिणा भणितम-साध व्यवसितम्, मित्रकार्यवत्सला एव सत्पुरुषा भवन्ति । 'निर्दोषाः खलु पूर्वगृहीताः' इति मन्त्रयित्वा मोचिता धनादयः । 'भगवन् ! त्वयाऽपि स्वविवेकानुरूपमाचरितव्यम्' इति भणित्वा विसजितो परिव्राजकः ।
धनोऽपि च तान् राजपुरुषान् प्रेषयित्वा श्रावस्ती प्रवृत्तो जलनिधितो रसंस्थितं वराटं नाम नगरम् । कथानकविशेषेण प्राप्तो पद्मावती नामाटवीम् । तस्यामपि च कतिपयकार्पटिकपरिवृतस्य एकस्मिन् विभागे उत्थितं वनगजेन्द्रयूथम् । प्रनष्टाः दिशि दिशि कार्पटिकाः धावितो गजकलभको आया। (मैंने उससे) आने का प्रयोजन पूछा । उसने कहा । तब मैंने जीवक से पूछकर राजा को विश्वास दिलाने के लिए उपहारस्वरूप राजकीय अलंकार के साथ उसे भेजा। वह श्रावस्ती गया। अलंकार को दिखाकर आने इस घटना को राजा के सामने निवेदन किया । राजा ने उस पर कृपा की। गन्धर्वदत्त को श्रावस्ती में प्रवेश कराने के लिए बड़े-बड़े लोगों को भेजा। बड़े लोग (उसे) लाये, राजा ने बड़े वैभव के साथ उसका प्रवेश कराया और माता-पिता आदि स्वजनों ने देखा । कण्ट में अटके हुए प्राणों वाली वासवदत्ता को उसने पाया। वह अलंकार मैंने श्रावस्ती के राजा को इस कारण दिया था।"
मन्त्री ने कहा--"ठीक किया, सत्पुरुष मित्र के कार्यों के प्रति प्रेम रखने वाले होते हैं।" पहले जिनको पकड़ा था वे निर्दोष हैं-ऐसा सोचकर धन आदि को छोड़ दिया। भगवन् ! आपको भी विवेक के अनुरूप आचरण करना चाहिए-ऐसा कहकर परिव्राजक को छोड़ दिया।
धन भी उन राजपुरुषों को श्रावस्ती भेजकर समुद्र के किनारे स्थित विराटनगर की ओर चला । कथानक विशेष से वह पद्मावती नामक बहुत बड़े जंगल में पहुँचा । उसमें भी एक ओर कुछ भिक्षुओं (कार्पटिकों) को घेरे हुए जंगली हाथियों का झुण्ड उठा । प्रत्येक दिशा में भिक्षुक अन्तर्धान हो गये। हाथी का बच्चा धन की ओर
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