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तो भयो ]
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पिंगकेण भणियं - भयवं ! जइ एएण हेउणा नागच्छंति, देह भिन्नो य जीवो, ता इमं इह नयरवत्तं चैव सव्वलोयपच्चवखं विरुज्झइ । भयवया भणियं -कहेहि, किं तं नरयवत्तं त्ति ? पिंगकेण भणियं-सुण, एत्थ नयरे एगेण तक्करेण नरवइभंडावारं मुट्ठमासी । सो य कहंचि निग्गच्छमाणो गहिओ निउत्तरिहि । गेहिऊण सलोत्तगो चेव उवणीओ नरवइस्स । राइणा भणियं वावाएह एयं । तओ सो वहनिउत्तेण लोहकुम्भोए पक्खित्तो; पक्खिविऊण य ठइया लोहकुम्भी । सम्मं ठइयाई छियाई तत्तसीसणं । तओ दिन्ना रक्खवालया । तहि च सो उवगओ पंचत्तं । नदिट्ठो सुमो वि से निगमणमग्गो त्ति । अओ अवगच्छामो, न अन्नो जीवो त्ति । भगवया भणियं भद्द ! जं किचि एयं ति । सुण, इहेगम्मि नयरे एगो संखिगो विन्नाणपगरिसं संपत्तो सीहदारे वि संखं धर्मेतो सव्वनयरजणस्स करणे वि य धमेइ । सो य राइणा पुच्छिओ कियद्दूरे धमेसि ? तेण भणियं - देव ! सोहदारम्मि । राइणा भणियं -कहं मम ठइयदुवारे वि वासहरए पविसइ त्ति ? तेण भणियं - नत्थि से पडिघाओ ति । तओ राइणा असद्दहंतेण सो पुरिसो ससंखगो चेव उड्ढियाए पक्खित्तो, वृत्तो
पिङ्गकेन भणितम् — भगवन् ! यदि एतेन हेतुना नागच्छन्ति, देहभिन्नश्च जीवः, तत इदमिह नगरवृत्तं चैव सर्वलोकप्रत्यक्षं विरुध्यते । भगवता भणितम् - कथय, किं तद् नगरवृत्तम् - इति ? पिङ्गकेन भणितम् - शृणु, अत्र नगरे एकेन तस्करेण नरपतिभाण्डागारं मुष्टमासीत् । स च कथंचिद् निर्गच्छन् गृहीतो नियुक्तपुरुषः । गृहीत्वा सलोप्त्रक एव उपनीतो नरपतेः । राज्ञा भणितम्व्यापादयत एतम् । ततः सो वधनियुक्तेन लोहकुम्भ्यां प्रक्षिप्तः प्रक्षिप्य च स्थगिता लोहकुम्भी । सम्यक् स्थगितानि छिद्राणि तप्तसीसकेन । ततो दत्ता रक्षपालकाः । तत्र च स उपगतः पञ्चत्वम् । न दृष्टः सूक्ष्मोऽपि तस्य निर्गमनमार्ग इति । अतोऽवगच्छामः, न अन्यो जीव इति । भगवता भणितम् - भद्र । यत् किञ्चिद् एतद् इति । शृणु । इहैकस्मिन् नगरे एकः शाङ्खिको विज्ञानप्रकर्षं सम्प्राप्तः सिंहद्वारे ( मुख्यद्वारे) अपि शङ्ख धमन् सर्वनगरजनस्य कर्णेऽपि च धमति । स च राज्ञा पृष्ट:- कियदूरे घमसि ? तेन भणितम देव । सिंहद्वारे । राज्ञा भणितम् - कथं मम स्थगितद्वारेऽपि वासगृह के प्रविशति - इति । तेन भणितम् - नास्ति तस्य प्रतिघात इति । ततो राज्ञाऽश्रद्दधता स
पिंग ने कहा - "यदि इस हेतु को आप नहीं मानते हैं और देह से भिन्न जीव मानते हैं तो सभी लोगों के द्वारा देखी हुई इस नगर की घटना से विरोध आता है।" भगवान् ने कहा - "कहो, वह नगर की घटना क्या है ?" पिंगक ने कहा - "सुनो, इस नगर में एक चोर ने राजा के भण्डार में चोरी की। कहीं से निकलते हुए उसे नियुक्त पुरुषों ने पकड़ लिया। उसे चोरी के माल के साथ पकड़कर वे राजा के पास लाये । राजा ने कहा - 'इसे मार डालो ।' तब वध के लिए नियुक्त पुरुष ने उसे लोहे की कुम्भी में डाल दिया, डालकर लोहे की कुम्भी बन्द कर दी । तपाये हुए शीशे से भली प्रकार छेद बन्द कर दिये । अनन्तर रखवाली करने वालों को ( रक्षपालों को ) दे दिया । उस लोहे की कुम्मी में वह पंचत्व को प्राप्त हो गया ( मर गया ) । उसके निकलने का सूक्ष्म भी मार्ग दिखाई नहीं पड़ा । अतः हम लोग जानते हैं कि देह से भिन्न जीव नहीं है ।" भगवान् ने सुनो - इस नगर में एक शंख बजाने वाला ज्ञान के प्रकर्ष को प्राप्त था। जब बजाता था तो नगर के सभी लोगों के कान में उसकी ध्वनि पहुँचती थी। राजा पर शंख बजाते हो ?' उसने कहा--' मुख्यद्वार पर ।' राजा ने कहा--' दरवाजा बन्द रहने पर भी मेरे निवासगृह में कैसे आवाज प्रवेश करती है ।' उसने कहा - 'आवाज़ के लिए कोई रुकावट नहीं है ।' तब राजा ने विश्वास न
कहा- "एक बात यह हैमुख्यद्वार ( सिंहद्वार) पर शंख ने उससे पूछा - 'कितनी दूर
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