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नवसरयकालवियसियकवलयदलकतिरायसोहिल्लं । कयमज्जलं पि कज्जलयरंजियं लोयणाण जुयं ॥१४४॥ महमासलच्छिया इव उम्मिल्लो से मुहम्मि वरतिलओ। उवरिरइयालयावलि अलिउलवलएहि परियरिओ॥१४५॥ अह कलसद्दायड्ढियसभवणवाविरयरायहंसाइं। चलणेसु पिणद्धाइं मणहरमणिनेउराई से ॥१४६॥ नहससिमउहसंवलियरयणसंजणियविउणसोहाहि । पडिवन्नाओ मणिविढियाहि तह अंगुलीओ त्ति ॥१४७॥ बद्धं च दइयहिययं व तीए वियडे नियंबबिंबम्मि। सुरऊसववरतूरं निम्मलमणिमेहलादामं ॥१४॥ बाहुलयामलेसं रइयाओ जणमणेक्कणाओ' उ। बाहुसरियाउ तीसे मयरद्धयवागुराओ व ॥१४६॥ नवशरत्कालविकसितकुवलयदलकान्तिरागशोभावत । कृतमुज्ज्वलमपि कज्जलरञ्जितं लोचनयोयुगम् ॥१४४॥ मधुमासलक्ष्मीरिवोन्मिलितस्तस्या मुखे वरतिलकः । उपरिरचितालकावल्यलिकुलवलयैः परिचरितः ॥१४॥ अथ कलशब्दाकर्षितस्वभवनवापीरतराजहंसे । चरणयोः पिनद्धे मनोहरमणिनूपुरे तस्याः ॥१४६॥ नखशशिमयूखसंचलितरत्नसंजनितद्विगुणशोभाभिः । प्रतिपन्ना मणिवेष्टिकाभिस्तथाऽङगुल्य इति ॥१४७॥ बद्धं च दयित हृदयमिव तया विकटे नितम्बबिम्बे । सुरतोत्सववरतूयं निर्मलमणिमेखलादामम् ॥१४॥ बाहुलतामूलयो रचिता जनमनश्चोरास्तु ।
बाहुसरिकाः (बाहुमालाः) तस्या मकरध्वजवागुरा इव ॥१४॥ नवीन शरत्काल में विकसित नीलकमल के पत्ते की कान्ति के समान शोभा वाले काजल को उसके दोनों नेत्रों में लगाकर उज्ज्वल कर दिया गया। वसन्तमास की लक्ष्मी के समान उसके मुख पर श्रेष्ठ तिलक लगा दिया। ऊपर बनी हुई अलकावली को भ्रमरावलियों जैसा कुंचित (लहरियों वाला) कर दिया। इसके बाद मनोहर मणियों से निर्मित नूपुरों को उसके दोनों पैरों में पहना दिया। उनके मधुर शब्द से राजमहल की वापिका में रहने वाले हंस आकर्षित होने लगे। नखरूपी चन्द्रमा की किरणों से युक्त रत्नों से पनी थोभा वाली मणिनिर्मित अंगूठियों से युक्त (उसकी) अंगुलियाँ थीं। उसके विशाल नितम्बबिम्ब पर मानो उसके बहाने प्रियतम का हृदय बाँध दिया गया हो । निर्मल मणियों से बनी हुई करधनी बांधी गयी। वह करधनी ऐसी लग रही थी मानो काम-क्रीडा के उत्सव का सुन्दर वाद्य हो। मनुष्यों के मन को चुराने वाली कामदेव की गेरी के समान उसकी बाहुरूपी लता के मूल में बाहुमालाएं बनायी गयीं । १४४-१४६। १. इक्कचओ चोराः (दे. ना.)।
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