________________
पढमो भवो] खलु समायरइ इमे अइयारे। तं जहा- उढदिसिपमाणाइवक मं वा, अहोदिसिपमाणाइवक मं वा, तिरियदिसिपमाणाइक्कम वा, खेत्तड्ढि वा, सइअंतर द्धं वा, तहा सचित्ताहारं वा, सचित्तपडिबद्धाहारं वा अप्पउलिओसहिभक्खणं वा, दुप्पउलिलोसहिभक्खणं वा, तुच्छोसहिभक्खणं वा, तहा इंगालकम्मं वा, वणकम्मं वा, सागडि कामं वा, भाडियकम्मं वा, फोडियकम्मं वा, दंतवाणिज्जं वा, लक्खवाणिज्जं वा, केसवाणिज्जं वा, रसवाणिज्ज का, विसवाणिज्जं वा, जंतपोडणकम्मं वा, किल्लंछणकम्मं वा, दवग्गिदावणयं वा, असइपोसणं वा, सरदहतलायसोसणयं वा, तहा कंदप्पं वा, कक्कुइयं वा, मोहरियं वा, संजुताहिगरणं वा, उवभोगपरिभोगाइरेगं वा, तहा मणदुप्पणिहाणं वा, वयदुप्पणिहाणं वा, कायदुप्पणिहाणं वा, सामाइअस्स सइअकरणं वा, सामाइअस्स अणवट्टियस्स करणं वा, तहा आणवणपओगं वा, पेसवणपओगं वा, सद्दाणुवाइत्तं वा, रूवाणुवाइत्तं वा, वहियासमाचरति इमान् अतिचारान । तद्यथा ऊर्ध्वदिकमाणातिक्रमं वा, अधोदिक्प्रमाणातिक्रमं वा तिर्यग्दिकप्रमाणातिक्रमं वा, क्षेत्रवद्धि वा, स्मत्यन्तद्धि वा, तथा सचित्ताहारं वा, सचित्तप्रतिबद्धाहारं वा, अपक्वौषधिभक्षणं वा दुष्पक्वौषधिभक्षणं वा, तुच्छौषधिभक्षणं वा, तथा अंगारकर्म वा, वनकर्म वा, शकटकर्म वा, भाटकर्म वा, स्फोटिकर्म वा, दन्तवाणिज्यं वा लक्षवाणिज्यं, केशवाणिज्यं वा, रसवाणिज्यं बा, विषवाणिज्यं वा, यन्त्रपोडनकर्म वा, निर्लाञ्छनकर्म वा, दवाग्निदापनं वा असतीपोषणं वा, सरोद्रहतडागशोषणकं वा तथा कन्दर्य वा, कौकुच्यं वा, मौखयं वा, संयुक्ताधिकरणं वा, उपभोगपरिभोगातिरेकं वा, यथा मनोदुष्प्रणिधानं वा, वचो दुष्प्रणिधान वा, कायदुष्प्रणिधानं वा, सामायिकस्य स्मृत्यकरणं वा, सामायिकस्य अनवस्थितस्य करणं वा, तथा आनायनप्रयोग वा, प्रेषणप्रयोग वा, शब्दानुपातित्वं वा, रूपानुपातित्वं वा, बहिष्पुरल प्रक्षेपणं वा तथा अप्रतिलिखितपरिणामों से च्युत न होता हुआ वह इन अतिचारों का आचरण नहीं करता है। वे ये हैं-ऊर्ध्वदिक्प्रमाणातिक्रम (परिमित मर्यादा से अधिक ऊँचाई वाले पर्वत आदि पर चढ़ना), अधोदिक्प्रमाणातिक्रम (मर्यादा से अधिक नीचाई वाले स्थान में उतरना), तिर्यक्प्रमाणातिक्रम (तिरछे स्थान में मर्यादा से अधिक जाना), क्षेत्रवृद्धि (मर्यादित क्षेत्र को बढ़ा लेना), स्मृत्यन्तद्धि (की हुई मर्यादा को भूल जाना), सचित्ताहार (सचेतन हरे फूल, फल, पत्र वगैरह खाना), सचित्तप्रतिबद्धाहार (सचित्त वस्तु से सम्बन्ध को प्राप्त वस्तु का खाना), अपक्व औषधि का भक्षण, दुष्पक्व औषधि का भक्षण, तुच्छ औषधि का भक्षण, अंगार कर्म (कोयले का कार्य करना), वनकर्म (लकड़ी का कार्य करना), शकटकर्म (गाडी वगैरह बनाने का कार्य), भाटकर्म (भड़भजे का कार्य) स्फोटिकर्म (किसी वस्तु के तोड़ने-फोड़ने का कार्य), दांतों का व्यापार, लाख का व्यापार, बालों का व्यापार, रस का व्यापार, विष का व्यापार, यन्त्रपीडन कर्म (यन्त्र द्वारा तिल ईख आदि पेलने का कार्य), शरीर के किसी अंग के छेदन करने का कार्य), दावाग्नि का जलाना, व्यभिचारिणी स्त्री का पोषण करना, सरोवर-झील-तालाब का सुखाना, कन्दर्ग्य (राग से हास्यसहित अशिष्ट वचन बोलना), कौत्कुच्य (हास्य और अशिष्ट वचन के साथ शरीर से भी कुचेष्टा करना),मौखर्य (धृष्टतापूर्वक आवश्यकता से अधिक बकवाद करना), संयुक्ताधिकरण (हिंसा के उपकरण जोड़ना), भोग और उपभोग के पदार्थों का आवश्यकता से अधिक संग्रह करना, सामायिक में मन नहीं लगाना, सामायिक में अशुद्ध उच्चारण करना अथवा जल्दी बोलना, सामायिक करते समय शरीर को निश्चल नहीं करना, सामायिक करते समय चित्त की चंचलता से पाठ वगैरह भूल जाना, सामायिक के प्रति चित्त का उत्साह न होना, मर्यादा से बाहर के क्षेत्र की वस्तु को किसी के द्वारा मँगाना. मर्यादा के बाहर कार्यवश नौकर आदि को भेजना, शब्द के द्वारा मर्यादा से बाहर वाले आदमियों को अपना अभिप्राय समझा देना, मर्यादा से बाहर आदमियों को अपना १, साडिय।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org