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वक्तव्य।
नहीं मिलनकशे ताय शुनदिन दास्ता मेरी । खमोशी गुफ्तग है, जवानी है जयां मेरी ॥ मेरा रोना नहीं, रोना है यह सारे गुलिस्तां का । ' वह गुल हूँ मैं,खिज़ा हर गुलकी है गोया खिजां मेरी॥ .
-"इक्रवाल" अल्पवयस्क और अनुभवहीन होने के नाते मुझे इतिहास के सम्बन्ध में अपनी सम्मति प्रकट करने का अधिकार नहीं, तो भी मैं मान्य रवीन्द्रनाथ के शब्दों में कहूँगा कि, "सव देशों के इतिहास एक ही ढङ्ग के होने चाहिये यह कुसंस्कार है । इस कुसंस्कार को छोड़ विना काम नहीं चल सकता । जो आदमी 'रथ चाइल्ड' का जीवन-चरित्र पढ़ चुका है,वह ईसा की जीवनी पढ़ते समय ईसा के हिसाब-किताब का खाता और डायरी तलब कर सकता है और यदि ईसा की जीवनी में उनके हिसाब-किताब का खाता तथा डायरी वह न पावेगा तो, उसे ईसा के प्रति अश्रद्धा होगी। वह कहेगा कि जिसके पास एक पैसे का भी सुभीता न था, उसकी जीवनी कैसी ? ठीक इसी तरह भारतवर्ष के राष्ट्रीय दातर से उसके राजाओं की वंशमाला और जय-पराजयके कागज़ पत्र न पाकर लोग निराश हो जाते हैं और कहने लगते हैं कि