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[१६] दृष्टि से नहीं दिखलाई जाती, प्रत्युत् इस भाव से, कि आगामी: संस्करण में ऐसी त्रुटियें न रहें। __ (क) पृ०८० में भारमल कावड़िया को महाराणा सांगा ने वि० सं० १६१० (६० स०१५५३) में अलवर से बुलवा कर:रण: थंभोर का किलेदार नियत करना लिखा है। परन्तु :महाराणा. साँगा का देहांत वि० सं० १५८४ (ई० स० १५२८) में हो चुका. था। ऐसी दशा में भारमल को वि० सं० १६१० में महाराणाः सांगा का अलवर से बुलाकर रणथंभोर का किलेदार बनाना : इतिहास से विरुद्ध है।
(ख) पृ० १९५ में लिखा है कि राठोड़ राव सीहाजी के पुत्र . आस्थानजी ने सं० १२३७ में मारवाड़ आकर परगने मालानी के गांव के खेड़ में अपना राज्य स्थापित किया। प्रथम तो संवत् में ही भूल है. राव सीहाजी का देहांत वि० सं० १३३० में होना. उनके मृत्यु स्मारक लेख से सिद्ध है, जो छप.चुका है। फिर उनके:: पत्र का वि०सं० १२३७ में राज्य पाना क्यों कर संभव हो सकता है ? दूसरा आस्थानजी के लिये परगने मालानी के गांव के खेड़ में राज्य स्थापित करना लिखा । इसका कुछ भी अभिप्राय समझ.. में नहीं आता। यदि इस जगह खेड़ गांव. या प्रदेश.. लिखा जाता, तो ठीक होता और वास्तविक अभिप्राय भी निकल.आता। .. :
इस ही प्रकार कहीं कहीं.उद्धृत किये हुए संस्कृत के शिला-; लेखों में भी असावधानी हुई है, जो खटकती हुई है। लेखक ने... कहीं-कहीं धार्मिक प्रवाह में वहकर खींचतान भी की है. इतना.. होते हुए भी पुस्तक उपादेय है । आशा है .प्रत्येक जैनधर्मावलंबी... इस पुस्तक को अपने पुस्तकालय में स्थान देकर लेखक के. उत्साह को बढ़ावेंगे, ताकि इसके आगे के भाग भी:प्रकाशित हो सकें। 4.१३.५-३३.
गौरीशंकर हीराचंद ओमा.