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प्रत्येक सभ्य जाति में वीर पुरुषों का सदा से सम्मानहोताचला
आता है और आगे भी होता रहेगा। वीरता किसी जाति । विशेष की सम्पचि नहीं है। भारत में प्रत्येक जाति में वीर पुरुष हुए हैं, परन्तु इतिहास के अभाव में उनमें से अधिकाँश के नाम तक लोग भूल गये हैं । राजपूताना सदा से वीरस्थल रहा है, उस के प्रत्येक भागमें वहाँ की वीर संतानों ने अपने देश व स्वाधीनता की रक्षा के लिये तथा परोपकार की वृत्ति से प्रेरित हो अनेकों बार अपना रक्त बहाया है, जिसकी स्मारक शिलाएँ जगह जगह पर खड़ी हुई हैं, जो उनकी वीर गाथाओं को प्रकट कर रही हैं। जैनधर्म में दया प्रधान होते हुए भी वे लोग अन्य जातियों से पीछे. नहीं रहे हैं । शताब्दियों से राजस्थान में मंत्री आदि उच्च पदों पर बहुधा जैनी रहे हैं और उन्होंने अपने दायित्वपूर्ण पद को निभाते हुए अनेकों कार्य ऐसे किये हैं, जिनसे इस देश की प्राचीन तक्षण कला की उत्तमता की रक्षा हुई है। उन्होंने देश की आपत्ति के समय महान सेवाएँ की हैं, जिनका वर्णन इतिहास में मिलता है। उनमें से अनेकों के चरित्र वो अब तक मिले ही नहीं हैं और जो . मिलते हैं वे भी अपर्ण, जिनका इतिहास पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ सकता । इस अवस्था में जो कुछ सामग्री प्राप्त है, उस ही के :
पर निर्भर रहना पड़ता है। क्योंकि अब तक जैन जगत् में का अनुराग बहुत कम उत्पन्न हुआ है। जिस प्रकार गुजरात के प्रसिद्ध जैन वीर विद्वान और दानी :