Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चन
६१.
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मां का वात्सल्य और पिता का अनुशासन
1- महासती विमलवती जी साहित्य-विशारद
इस विराट् विश्व में कितने ही व्यक्तियों को आंखें जी महाराज के पावन उपदेश को सुनकर अपनी मातेश्वरी प्राप्त नहीं हैं, अतः वे देख नहीं सकते। कितने ही प्रेमवती जी के साथ दीक्षा ग्रहण की। ये प्रकृति से सरल, व्यक्तियों को आंखें प्राप्त हैं पर सूर्य की चमचमाती किरणों स्वभाव से मृदु और आचरण से पवित्र थीं। किन्तु अध्ययन के दिव्य प्रकाश से घबराते हैं, और अन्धकार में रहना अध्यापन की दिशा सद्गुरुदेव से प्राप्त हुई। अनेकों बार ही पसन्द करते हैं। कुछ व्यक्तियों के नेत्र होते हैं और वे सद्गुरुदेव के हितकारी उपदेश ने मेरे जीवन को नया मोड़ प्रकाश में रहना ही पसन्द करते हैं। श्रद्धेय उपाध्याय दिया। मेरे जीवन में अभिनव कांति और शांति लाने का पुष्कर मुनि जी महाराज तृतीय प्रकार के व्यक्ति हैं जिन्हें श्रेय सद्गुरुवर्य को है। यदि समय-समय पर उनका मार्गविवेक का नेत्र प्राप्त है और ज्ञान-ध्यान के निर्मल प्रकाश दर्शन न मिलता तो मेरे जीवन का निर्माण इस रूप में में रहना उन्हें पसन्द है। आचारांग में भगवान महावीर नहीं हो सकता था। कई बार सद्गुरुदेव ने माँ का ने कहा, 'परम ज्योतिवाले मानव ! तू पराक्रम कर । जीवन वात्सल्य दिया है तो कई बार जीवन-निर्माण के लिए जीने का अर्थ है सफलतापूर्वक जिया जाय केवल सांस लेना कठोर अनुशासक बनकर पिता के कर्तव्य को निभाया है। ही जीवन नहीं है । उस प्रकार का जीवन तो कीड़े-मकोड़े, इस प्रकार गुरुदेव में जहाँ पिता का अनुशासन है वहाँ माँ पशु-पक्षी भी जीते हैं।
का वात्सल्य भी है। केवल वात्सल्य ही रहे तो जीवन का श्रद्धय पुष्कर मुनिजी महाराज एक सफल साधक, निर्माण नहीं हो सकता और केवल अनुशासन ही रहे तो कलाकार, जीवननिर्माण करने वाले महान् सन्त हैं। जीवन में स्नेह का संचार नहीं हो सकता। दोनों का उन्होंने कलाकार की भाँति हजारों व्यक्तियों का जीवन मिला-जुला रूप ही गुरुदेव के जीवन की महत्त्वपूर्ण निर्माण किया है । अनघड़ पत्थर को मूर्ति बनाना सरल है, विशेषता है। पूज्य गुरुदेव श्री मेरे विद्यागुरु भी हैं, अनुकिन्तु मानव को सच्चा मानव बनाना कठिन है। उसके शासक भी हैं, सम्प्रदाय के अधिनायक भी हैं। उन्होंने मेरे लिए जीवन को मांजना होता है और निखारना मन में ज्ञान का बीज वपन किया और विकास किया। होता है। जीवन में विकारों की काट-छांट करनी पड़तीं उनकी प्रबल प्रेरणा ने मुझे सतत विकासोन्मुख किया है। है। मेरे जीवन के निर्माण में आपश्री का अपूर्व योगदान उनका पथ-प्रदर्शन, अनुग्रह और आशीर्वाद मुझे सदा प्राप्त रहा है । यों तो मैंने नन्हीं उम्र में सद्गुरुणी जी श्री हरकू होता रहे इसी में मैं अपना सौभाग्य समझती हूँ।
हा
श्रद्धा-सुमन
. महासती प्रियदर्शना परम श्रद्धय सद्गुरुवर्य का सार्वजनिक अभिनन्दन कस्तुरी की सुगन्ध, प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं किया जा रहा है। इस पावन प्रसंग पर हृदय के निर्मल होती उसी प्रकार आपके व्यक्तित्व को निखारने की आवभावों की एक लघु भेंट उनके श्री चरणों में समर्पित करती श्यकता नहीं। वह तो स्वयं निखरित है। हुई मैं अपने आपको धन्य अनुभव कर रही हूँ।
संसार में तीन प्रकार के महापुरुष होते हैं। एक जन्म गुरुदेव श्री के सम्बन्ध में मैं क्या लिखू। जैसे सूर्य से ही महापुरुष होते हैं, उनमें अन्य व्यक्तियों से विलक्षण का प्रकाश, चन्द्रमा की शीतलता, समुद्र का गाम्भीर्य, व्यक्तित्व होता है। दूसरे महापुरुष वे होते हैं जिनमें
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