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अल्पबहुत्व चार प्रकार से हैं— अल्प, बहुत्व, तुल्य और विशेषाधिक है । अनाहारक जीव अनंत हैं-- अनाहारक से आहारक जीव असख्यातगुणे अधिक है ।
केवल ज्ञानी मनुष्य अवगाहना से चार स्थान होनाधिक है- क्योंकि अपर्याप्त अवस्था में केवल ज्ञान नहीं होता है परन्तु केवल समुद्घात करते हुए सम्पूर्ण लोकव्यापौ केवली के प्रदेश होने से असंख्यातगुणी होनाधिक होती है ।
अचित्त महास्कंध तीन लोकव्यापी है । यह स्कंध रचना केवलीसमुद्घात के चतुर्थ समय में होती है । जीव द्रव्य व अजीव द्रव्यों को ग्रहण कर उसको अपने शरीरादि रूप में परिणत करते हैं । यह उनका परिभोग है । जीव द्रव्य परिभोक्ता है और अजीव द्रव्य अचेतन होने से ग्रहण करने योग्य है, अतः वे भोग्य है । इस प्रकार जीव द्रव्य और अजीव द्रव्यों में भोक्तृभोग्य भाव है ।
परमाणु पुद्गल में उत्पाद व्यय और ध्रौव्य और चरम- अचरमत्व
पुद्गल शाश्वत भी है और अशाश्वत भी । द्रव्यार्थतया शाश्वत है और पर्याय रूप से अशाश्वत है । परमाणु पुद्गल द्रव्य को अपेक्षा अचरम ( अन्तिम नहीं ) है । यानी परमाणु संघात रूप में परिणत होकर भी पुन: परमाणु बन जाता है इसलिए द्रव्यत्व की दृष्टि से चरम ( अन्तिम - Ultimate ) नहीं है । क्षेत्र, काल, और भाव की अपेक्षा से चरम भी होता है और अचरम भी ।
पुद्गल की द्विविधा परिणति
पुद्गल की परिणति दो प्रकार की होती है
१ – सूक्ष्म और २ – बादर-स्थूल । अनंतप्रदेशी स्कंध भी जब तक सूक्ष्म परिणति में रहता है तब तक इन्द्रियग्राह्य नहीं बनता और सूक्ष्म परिणति वाले स्कंध चतुःस्पर्शी होते हैं । उत्तरवर्ती चार स्पर्श स्थूल परिणामवाले स्कंधों में ही होते हैं ।
गुरु-लघु और मृदु-कठोर ये
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रूक्ष स्पर्श की बहुलता से
स्पर्श पूर्ववर्ती चार स्पर्शो के सापेक्ष-संयोग से बनते हैं लघु स्पर्श होता है और स्निग्ध की बहुलता से गुरु । शीत और स्निग्ध स्पर्श की बहुलता से मृदु स्पर्श और रूक्ष तथा उष्ण स्पर्श की बहुलता से कर्कश स्पर्श बनता है। तात्पर्य यह है कि सूक्ष्म परिणति की निवृत्ति के साथ-साथ जहाँ स्थूल परिणति होती है, वहाँ चार स्पर्श और बढ़ जाते हैं ।
प्रदेश और परमाणु में सिर्फ स्कंध के पृथग् भाव ( अलग होने ) और अपृथग् भाव ( जुड़े रहने ) का अन्तर है ।
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