________________
( 31 )
अर्थात् आकाश के एक प्रदेश में ठहरने वाला होता है, वह अप्रदेशी और दो आदि आकाश-प्रदेश में ठहरनेवाला होता है वह सप्रदेशी है ।
काल की अपेक्षा से - जो स्कंध एक समय की स्थिति वाला होता है वह अप्रदेशी और जो इससे अधिक स्थितिवाला होता है वह सप्रदेशी है ।
भाव की अपेक्षा से - एक गुण ( Unit ) वाला स्कंध अप्रदेशी और अधिक गुण वाला सप्रदेशी होता है ।
द्रव्य और क्षेत्र को अपेक्षा से परमाणु अप्रदेशी होते हैं । काल की अपेक्षा से एक समय की स्थिति वाला परमाणु अप्रदेशी और अधिक समय की स्थिति वाला सप्रदेशी । भाव की अपेक्षा से एक गुणवाला अप्रदेशी और अधिक गुणवाला सप्रदेशी ।
परिणमन के तीन हेतु
परिणमन की अपेक्षा पुद्गल तीन प्रकार के होते हैं
१ - वैस्रसिक - ( स्वाभाविक ) पुद्गल
२ - प्रायोगिक पुद्गल
३ - मिश्र पुद्गल
स्वभावतः जिनका परिणमन होता है— वे वैस्रसिक है— जैसे— जीवच्छशरीर । जीव के प्रयोग से शरीर आदि रूप में परिणत पुद्गल प्रायोगिक है । जीव के द्वारा मुक्त होने पर जिनका जीव के प्रयोग में हुआ परिणमन नहीं छूटता अथवा जीव के प्रयत्न और स्वभाव -- दोनों के संयोग से जो बनते हैं - वे मिश्र कहलाते हैं— जैसे - मृत शरीर |
इनका रूपान्तर असंख्यातकाल के बाद अवश्य ही होता है ।
" जत्थ जल तत्थ वणस्सइ" अर्थात् जहाँ जल होता है- वहाँ वनस्पति अवश्यमेव होती है । जल समुद्रों में विशेष होता है इसलिए समुद्र में जीव अधिक होते हैं परन्तु पूर्व-पश्चिम के समुद्रों में चन्द्र-सूर्य के द्वौप विशेष है अत: वहाँ जल थोड़ा होने से वनस्पति भी थोड़ी है और पश्चिम में गौतम द्वीप अधिक होने से तीनों दिशाओं की अपेक्षा पश्चिम दिशा में जीव सबसे थोड़े हैं ।
अस्तु पण्णवण्णा का तीसरा पद अल्पबहुत्व का है जिसमें दिशा, गति, पुद्गल आदि २७ द्वार से अल्पबहुत्व का विवेचन है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org