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DIRHANIH
'न जानिगडिता काचिद् गुणाः कल्याणकार व्रतस्थमपि चाण्डालं तं देवा ब्राह्मण विदुः ॥११-२०॥पम०
भावार्ष-'कोई भी जाति गहित नहीं है-गुण ही कल्याणके कारण हैं। व्रतसे युक्त होनेपर एक चाण्डालको भी श्रेष्टजन ब्राह्मण कहते हैं।
यही बात श्री सोमदेव आचार्य निम्न प्रकार स्पष्ट करते हैं:
श्रीमत्प्रमाचंद्राचार्यजीने ' प्रमेयकमलमार्तण्ड ' नामक प्रथमें भी जातिवादका खासा खंडन किया है । उस प्रकरणके मुख्य बाक्य की यहा हम उपस्थित करते हैं:
'न हि तत्तथाभूतं प्रत्यक्षादिप्रमाणन: प्रतीयते ।' 'प्रत्यक्षादि किसी भी प्रमाणसे जातिका ज्ञान नहीं होता है।' 'मनुष्यत्वविशिष्टतयेव ब्राह्मण्य विशिष्टतयापि प्रतिपत्यसंभवात् ।'
'सविकल्पक प्रत्यक्षसे भी जातिका ज्ञान नहीं होसक्ता क्योंकि जैसे किसी व्यक्तिको देखनेसे उसमें मनुष्यताका प्रतिमास होता है उस तरह ब्राह्मणपनका प्रतिभास नहीं होता । अर्थात् एक मनुष्य जातिकी तरह ब्राह्मण कोई जाति नहीं है।'
"अनादौ काळे तस्याध्यक्षेण ग्रहीतुमशक्यत्वात्। प्रायेण प्रमदानां कामातुरतया इह जन्मन्यपि व्यभि व रोपलम्भाच कुतो योनिभिबन्धनो ब्राह्मण्यनिश्चयः ? न च विप्लुतेतापित्रापत्येषु बेरक्ष्यं रक्ष्यते । न खलु वडवायां गर्दभाश्च प्रापत्येडि६५ ब्रह्मण्यां ब्राह्मणशवप्रभवापत्येष्वपि वेलक्षण्य टक्ष्यते क्रिपाविलो त् ।" ___ "मनादिकालसे मातृकुल और पितृकुल शुद्ध हैं, इसका पता लगाना हमारी आपकी शक्ति के बाहर है। प्राय: स्त्रिया कामातुर होकर व्यभिचारके चक्क में पड़ जाती हैं । झिा जन्मसे जातिका निश्चय कैसे होसकता है ? अभिवारो माता पि' की सन्तान मोर निर्दोष माता