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३४] पतितोद्धारक जैनामर्म । छत्रप, नहपान और रुद्रसिंह भी जैन धर्म में दीक्षित किये गये थे। एक समय अरन, ईरान, अफगानिस्तान आदि देशोंमें दि० जैन मुनियोंका विहार होता था । और वहाके यवनादि जातिके मनुष्य जैनी थे। श्रवणबेलगोलके म्व० पण्डिताचार्यजीने दक्षिणके जैनियोंमें कितनोहीको अरब देशसे आया हुआ बताया था। यह तो हुये थोडसे ऐतिहासिक उदाहरण । _अब जरा शिलालेखीय साक्षीको भी दृष्टिगत कीजिये । मथुराके कंकालीटीलासे प्राप्त कुशनकाल - आजसे लगभग दो हजार वर्ष पहले-के जैन पुरातत्वसे प्रकट है कि वहाकी अनेक मूर्तिया नीच जातिके लोगोंने निर्माण कराई थीं। नर्तकी शिवयशा द्वारा निर्मित आयागफ्ट पर जैनस्तूप बना है और लेख है कि -
"नमो अईनानं फगुयशस नतकस भयाये शिवयशा ....इ . आ ..आ....काये आयागपटो कारितो अरहत पूजाये।" __अनुवाद-“ अतों को नमस्कार ! नर्तक फगुयशा (फल्गुयशस) की स्त्री शिवयशाने ....अर्हतोंकी पूजाके लिये आयागपट बनवाया।" (प्लेट नं० १२)
मथुराके होली दरवाजेसे मिले हुये स्तूपवाले आयागषट पर एक प्राकृत भाषाका लेख निम्न प्रकार है...
"नमो अईतो वर्धमानम आराये गणिकायं लोगशोभिकाये धितु शमण साविकाये नादाये गणिकाये वसु (ये ) आहेतो देविकुल,
१-संक्षिप्त जन इति:, भा०२ खड २ पृ० १९-२१ । २-जैन होस्ठल-गजीन । ३-ऐशि टिक रिमचंज, भा० ३ ० ६ ।