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शूद्र जातीय धर्मात्मा!
'एहु धम्म जो आपरइ बभणु सुदवि कोइ । सो सावन, कि सावयह अण्णु कि सिरि मणि होह ।।
-श्री देवसेनाचार्य। __“ इस (जैन) धर्मका जो आचरण करता है, बामण चाहे शुद्र, कोई भी हो, वही श्रावक (जैनी) है। और क्या श्रावकके सिर पर कोई मणि रहता है ?" कषायें.
१-सुनार और साधु मेतार्य। २-पनि भगदच । ३-माली सोमदच। पदया।