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८८] पतितोद्धारक जैनधर्म । नहीं है। जितारिके सिर पर तो घमंडका भूत चढ़ा था। वह चटसे बोला-"उस कमीने भगदत्तकी शक्ति ही क्या होसक्ती है ? कहा जितारि क्षत्री और कहा वह कमीना ? बस उसको प्राण दंड देकर ही मैं कल लंगा ।"
मत्री चुप हो रहे । राजा जितारि रणचण्डीका सप्पर मरने के लिए उद्धत सेनाको लेकर नगरसे बाहर निकला। उस समय अकाल वृष्टि हुई, पृथिवी कंप गई और प्रचंड उल्कापात हुआ। इन अप. शकुनोके द्वारा मानो प्रति जितारिको सचेत कर रही थी कि घमंड मत करो। गणों का आदर करना मीखो। परन्तु जितारि मानके घोड़ेपर सवार हो अंधा बना हुआ था। वह भगदत्तसे जा भिडा। दोनों में नायें जूझने लगी। मारकाटमे रणभूमि लाल-लाल होगई। देखने ही देखते भगदत्तकी मेनाने जितारीकी मेनाको तितर-वितर कर दिया। उसके पैर उखड गये और वह ग्वेत छोड़कर भागने लगी। भगदत्तने जितारिको अब भी मचेत किया, परन्तु उसका काल सिरपर मडरा रहा था। उसने भगदत्तकी बात नहीं सुनी । भादत्त क्रोधमे काप उठा और उसपर कड़े बार करने लगा। जिनारि उसके चार सहन न कर सका और प्राण लेकर भाग खड़ा हुआ। भगदत्त तब भी उसका पीछा नहीं छोड़ता था, किन्तु मंत्रियों के समझानसे उसने भागते हुए जितारिको छोड़ दिया।
भगदत्तकी मेनाने विजय घोष किया। और उसने मगर्व बनारसमें प्रवेश किया।
मुंडिकाने सुना कि उसका पिता युद्ध में परास्त हुआ है, जमीन