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राजा कड़क कर बोला- " तुम मंत्री नहीं - राजद्रोही हो । चुप रहो । सज्जनो ! जिस वस्तुकी आज रक्षा और पालन-पोषण करते मुझे बारह वर्ष होगये, क्या अब मुझे उसका मनमाना उपयोग करनेका अधिकार नहीं हैं ?"
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प्रजाने एक स्वरसे कहा- 'अवश्य है, महाराज ! अवश्य है ।' नीति के आगार मंत्रीने फिर साहसपूर्वक कहा - " यह अधिकार अचेतन पदार्थोंपर होसक्ता है, सचेतन मनुष्यपर नहीं हो सका । किसी मनुष्यकी इच्छा के प्रतिकूल कोई कार्य करनेका अधिकार किसीको नहीं है । उसपर कन्याके विवाह में उसकी इच्छा ही प्रधान होना चाहिये ।"
राना क्रोध से थरथर कापने लगा और दात पीसते हुये बोला'दुष्ट ! उच्चपदको पाकर तू बौखला गया है। देखता नहीं, दास दामी मनुष्य है या और कोई ? घोडे हाथी, गाय, भैंस, सचेतन पदार्थ है या अचेतन ? मैं उनका सामी और अधिकारी नहीं हूं ? अब मुंह खोला तो जवान निकलवा लूंगा |
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प्रजा राजा के अवार्मिक उद्देश्य अपरिचित हुई उसका साथ देरही थी, बेचारा मंत्री करता भी क्या ? जनताको धोखा देकर गगने अपनी रमिलाको पूर्ण कर मुखपर कालिमा लगा ली ।
(२)
उक्त घटनाको घटित हुये वर्षो बीन गए। राजाने अपनी उनीको गनी बना लिया ! यह बात भी अब किसी पर नहीं सुन पड़ती ' हाँ, सभी के हृदय में वह शल्यकी तरह चुभ रहीं थी; पर
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