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पतितोद्धार
धर्म |
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इसप्रकार परोषकारकी महान तपस्या तपते हुए वे मां-बेटा वहां रह रहे थे । उन्होंने अपना वह सीधा सादा विवेकमय जीवन बना लिया था । मनुष्य जीवनका सार वह उसमें पा गये थे खा पीकर आरामसे जिन्दगी विताना तो पशु भी जानते हैं, मनुष्य जीवन इससे कुछ विशेष होना चाहिये । वह विशेषता स्वयं जीवित रहने और अन्योंको जीवन विताने में सहायता प्रदान करने में है । कार्तिकेय और उसकी मांने इस सत्यको मूर्तिमान बना दिया था !
मा बेटा दोनों इस जीवन में बड़े सुखी थे, परन्तु देवसे उनका यह सुख देखा न गया एक दिन दोपहरको रानीने बनमें चिल्लाहट सुनी। वह कुटिया से बाहर निकली । देखा, एक चीत्ता एक लकड़हारिनकी ओर झपट रहा है। रानीका रोम रोम परोपकार मे सुवासित था, उसे अपने प्राणोका भी मोह न आया । तलवार लेकर वह लकड़हारिनकी रक्षा करने के लिये झट दोड़ी । चीत्तेपर उसने तलवारका बार किया । चीत्ता घायल होकर उसपर झपटा। रानीका पैर फिसला और वह गिर गई। चीतेका पंजा उसके वक्ष थक और पेटको लहूलुहान कर गया । चित्ता फिर झपटा; किन्तु अबकी एक सनसनाते हुये तीरने उसको प्राणान्त कर दिया ! दूसरे क्षण कार्तिकेय भगते हुये घटनास्थलपर पहुंचे । देखा, उनकी मा अचेत पड़ी है, किन्तु लकड़हारिन बाल-बाल बच गई है। 'लकहारिनकी रक्षा में रानीने अपने अमुल्य प्राण उत्सर्ग कर दिये ।' यह स्वबर विजलीकी तरह चारों और फैल गई । अनेक नरनारी इकट्ठे होगये और रानीके साहसको सराहने लगे ।